YOGESH kiniya 30 Mar 2023 आलेख समाजिक अदालत 7222 0 Hindi :: हिंदी
अदालत अदालत या न्यायालय यह शब्द मात्र ही इंसान के लिए उस पर हुए अन्याय पूर्ण अत्याचार के खिलाफ़ मलहम लगाने वाले आशा केंद्र के रूप में है । जब कोई इंसान किसी न्याय की उम्मीद में अदालत या न्यायालय की तरफ आमुख होता है तो उसके जहन में न्यायधीश की छवि न्याय के देवता शनिदेव से कम नहीं होती है। इस सृष्टि में ईश्वर एक अज्ञात सत्ता है; लेकिन उसकी अदृश्य अदालत के फ़ैसले पर आज भी जनमानस को अटूट विश्वास और श्रद्धा है ।एक प्रचलित अवधारणा है कि हर अन्यायपूर्ण कृत्य पर ईश्वर न्याय जरूर करता है। परंतु वास्तविकता आज इसके विपरित होती जा रही है । आज के इस कलयुगी दौर में अन्यायी,अत्याचारी और दुराचारी फलीभूत होता जा रहा है तथा सामाजिक और राजनीतिक उच्च पदों पर आसीन हो कर समाज का ठेकेदार बन चुका हैं। तो एक बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि,ईश्वर की अदालत के फ़ैसलो की देरी के कारण लोगो का ईश्वर की अदालत से धीरे धीरे विश्वास उठने लगा है। क्या ईश्वर की अदालत से उठता हुआ विश्वास समाज के लिए घातक नहीं होगा ? क्या यह सभ्य समाज में अराजकता, अविश्वास और पापाचार को बढ़ाने वाला नहीं होगा ? नि:संदेह होगा। तो क्या यह अत्याचारी और दुराचारी लोग इसी तरह समाज में फलीभूत होकर अन्याय करेगें ? इनको किसी अदालत में सज़ा नही सुनाई जाएगी ? जरूर सुनाई जाएगी और वह है लोकतंत्र की अदालत ! इन अन्यायीयो के अन्याय से जनसमान्य को बचाने के लिए ही तो लोकतंत्र के तीसरे मजबूत स्तंभ के रूप में स्थापित हुई है यह अदालते या यह न्याय के मंदिर। यह अदालते लोकतंत्र का सबसे मजबूत और शक्तिशाली स्तंभ है। जिस पर लोगों का अटूट विश्वास और श्रद्धा है। यह लोकतंत्र के दोनों स्तंभो कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ इन दोनो की आत्ततायीता से लोगों को बचाने के लिए ढाल का काम करती है। नि:संदेह लोगों को आज भी अदालत पर अटूट विश्वास है। परंतु कालांतर में देश की न्यायिक प्रक्रिया ने सभ्य समाज के सामने ऐसे-ऐसे दृष्टांत प्रस्तुत किए हैं, जिससे न चाहते हुए भी लोगों के मन में न्याय के इन मंदिरों के प्रति सन्देह उत्पन्न हो गया है । और आज समाज को लगने लगा है की न्याय के इन मंदिरों के भगवान अर्थवान और सत्ताधारी लोगों पर मेहरबान होकर फैसले सुनाने लगे है। लोगो का इन अदालतों से विश्वास उठना भी लाज़मी है ; क्योंकि एक इंसान अर्थ या सत्ता के मद में अंधा होकर अपराध पर अपराध करता जाता है और न्यायालय कबूतर की तरह सब कुछ जानते हुए भी आंखें मूंद कर बैठा रहता है। न्याय के इन मंदिरों के सिद्धहस्त उस मदांध व्यक्ति पर इस प्रकार रख दिए जाते है मानो यह संदेश दिया जा रहा हो ,कि जब तक हम है तब तक तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और जैसे ही वह व्यक्ति सत्ता या लक्ष्मी के आसन से पदच्युत होता है तो न्याय के यह भगवान जाग जाते हैं । लेकिन सावधान !! वह भगवान इसलिए नहीं जागा है की उसे अब न्याय करना है या वह अब शिशुपाल के सौ वे अपराध पर सुदर्शन चलाना है। अपितु वह इसलिए जागा है क्योंकी उसको अब सत्ताधारी के आदेश की पालना करते हुए शिशुपाल को कटघरे में खड़ा कर सज़ा सुनानी है। तो श्रीमान जी जब यह शिशुपाल आपकी आंखों के सामने एक-एक करके सौ अपराध कर रहा था तब आप मौन क्यों थे? आप की अदालत ने संज्ञान लेना और समय पर न्याय करना बेहतर क्यों नहीं समझा ! जबकि उसे इस सभ्य समाज का शत्रु और दोषी पुलिस के द्वारा बहुत पहले करार दिया जा चुका था। परंतु आप उसे सजा नहीं दे पाए क्योंकि उसके ऊपर सत्ता मेहरबान थी और आप मजबूर थे। हे! न्याय के देवताओं तुम्हारी अदालत के फैसले पर आज भी इस देश की जनता को पूर्ण विश्वास और श्रद्धा है । अपने कृत्यों से इस विश्वास को समाप्त मत होने देना यहीं गुजारिश रहेगी। क्योंकि आज भी इस देश की अदालतो के भगवान को पंच परमेश्वर दर्जा दिया जाता है।
Senior teacher Swami Vivekanand government model school siwana, Barmer...