Santosh kumar koli 05 Jul 2023 कविताएँ देश-प्रेम मां पन्नाधाय 5546 0 Hindi :: हिंदी
हाय, मैंने यह कब, क्या कर दिया? मैं तो मां बनाया था, सीने में इतना त्याग, किसने भर दिया? इतना सोचकर खुदा, ग़म खा गया, पन्नाधाय बनाने की, आगे के लिए कसम खा गया। मन की आंखों से देख, ममता से स्नान करा। कुंवर बिछौने सुला दिया, अंतिम स्तनपान करा। बनवीर आया महल में, बोला कपटी कड़ककर। बोल, पन्ना कहां उदयसिंह, बोला गले पर खड्ग धर। मां ममता ने सीने पर, पण का पत्थर धर लिया। जहां सोया था चंदन, उधर कांपता कर किया। पलक झपकते ही, तलवार से तड़ित् कौंध गई। चंदन का कर शीश अलग, मां ममता को रौंद गई। आंखों के आंसू, कर आंख मिचौनी, आंखों में ही सूख गए। हुआ याम कयाम, कर कांव-कांव, खग वृंद ढूंक गए। मृग छौनें का शोणित, बिस्तर ने सोख लिया। कुछ ज़मीं पर टपका, कुछ असि ने रोक लिया। ममता से ज्यादा स्वतः, स्वामिभक्ति का तोल तुल गया। अब तोल बचा, न तुला तौला, इतिहास रक्त से धुल गया। पन्ना त्याग भक्ति की धार, परा परम के पार है। कौन चुकाएगा ये ऋण, जो सृष्टि पर उधार है? चंदन की वो खुशबू, याद द्वापर की ताज़ा कर गई। धन्य बेटी गुर्जर की, तू इतिहास को नाजां कर गई। पन्ना नहीं तो कहां मेवाड़, कहां राणा प्रताप? कहां मेवाड़ी आन -बान, कहां मुग़लिया सल्तनत पर थाप। प्रताप का प्रताप, मुजर्रद रहा, मुजर्रद चला। भेड़िया सिंह को बेड़ी लगा सके, ऐसी कोख किसे मिली भला। ऐसी कोख किसे मिली भला।