संदीप कुमार सिंह 13 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3858 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद,) भूल पर भूल वे करते आ रहें हैं ख़ुद को धोखा दे रहें हैं। उसे अपनों में ही आन आड़े आ गया है उलझ रहें हैं। पश्चाताप की आग में वे जलते भी दिखते हैं कभी_कभी_ खुद ही वे सारे खिलौना बनकर पल_पल बिखर रहें हैं। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....