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भटक रहा मन बावरा-सच्ची झूठी बात

संदीप कुमार सिंह 11 Aug 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8015 1 5 Hindi :: हिंदी

(दोहा छंद) 
भटक रहा मन बावरा,सच्ची झूठी बात।
सब इसका ही देन है,काली पीड़ित रात।।

भटक रहा मन बावरा,रहता कभी न शांत।
होता है तब शांत यह,थकने के उपरांत।।

भटक रहा मन बावरा,क्या क्या खेले खेल।
यहां वहां करता रहे,करे नहीं निज मेल।।

भटक रहा मन बावरा,कैसे करिए शांत।
रहे नहीं वश में कभी,बिगड़े सभी तुकांत।।

भटक रहा मन बावरा,देख जगत का रंग।
रमता अब क्यों यह नहीं,अमन हुआ है भंग।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

Comments & Reviews

Saurav Singh
Saurav Singh Magnificiant कोट

8 months ago

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