संदीप कुमार सिंह 25 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगें। 7954 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक) रेत की तरह बिखड़ा हुआ है,आज लोगों के तौर तरीके । भूलते जा रहें हैं आज, अधिकतर लोग जीने के सलीके। न इनको दिन को चैन है, न ही रात को रहते ये उलझे- आगे क्या होगा जाने भगवान, दे दो इनको कुछ दकीके। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....