संदीप कुमार सिंह 19 Apr 2024 कविताएँ प्यार-महोब्बत मेरी यह कविता पाठक लोगों को अवश्य ही पसंद आएगी. 286 0 Hindi :: हिंदी
दर्द सहने की आदत, कुछ इस तरह हो गई। सुबह का दर्द शाम तक, पुरानी हो गई। क्या तोड़ोगे टूट कर, निखरने वालों को। आग की तपिश भी, अब शीतल लगने लगी। दर्द सहने की.... दिल की मजबूरियाॅं ही है जो, ज़ख्म अपनों से खाते हैं। वरना चेहरे पढ़ने की, हुनर हम भी रखते हैं। जानते हैं जो हबीब बने बैठे हैं, हमारी महफ़िल में, वहीं रक़ीब बने बैठे हैं। गैरों के महफ़िल में, देख लो आजमा कर, अब हम न कभी टूटेंगे। जरा-जरा् टूट कर ही निखरें हैं, अब क्या बिखरेंगे। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....