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लघुकथाःः कामचोरी

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक Short Story 87347 0 Hindi :: हिंदी

	टी स्टाल पर हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हुए एक शख्स से मैंने पूछा,‘‘तुम अक्सर इस चाय की दुकान पर बैठे मिलते हो। आसपास कहीं काम करते हो क्या?’’
वह मुझे घूरकर ऐसे आंॅंखें दिखाया, जैसे मैंने उसकी आंॅंखें मांग ली हो, ‘‘मै क्यों करूंॅं काम?’’
मैंने चैंकते हुए प्रतिप्रश्न किया,‘‘क्यों करते हैं काम? परिवार और पापी पेट के लिए! शादी कर ली है?’’ 
वह बेतकल्लुफी से जवाब दिया,‘‘हूंॅं! हो गई है।’’
मैं हैरानी जताया,‘‘शादी के हो जाने से तुम्हारा आशय?’’
‘‘मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से शादी हुई है समझे।’’ वह अकड़कर जवाब दिया,‘‘डिलिवरी  भी फोकटफंड हो गया। ऊपर से सरकार से 1400 रुपये का चेक भी मिल गया। सरकार से बच्चों की पढ़ाई, यूनिफार्म, किताबें, साइकिल, मघ्यान्ह भोजन सब फ्री मिल रहा है, तो क्यों करूं मैं काम?’’
मैंने कहा,‘‘बच्चे बड़े होंगे, तब उनकी ऊंची शिक्षा में पैसे की जरूरत पड़ेगी, इसलिए कमा ले रे भाई।’’
इसबार उसका जवाब आया,‘‘हमलोग नसीबवाले हैं, जो बीपीएल में हैं। 1 रुपये किलो राशन  मिलता है। आधा खाते हैं आधा बेचकर सब्जी खरीदते हैं। बच्चे बड़े होंगे, तो उन्हें स्कालरशिप, लैपटाॅप व मोबाइल मिलेगा ही। मांॅं-बाप को वृद्धावस्था पेंशन मिलता ही है। फिर बेजा सर क्यों खपाऊं मैं।’’
	अब, मुझे मजाक सूझा। उसे छेड़ा, ‘‘मां-बाप की तीर्थयात्रा के लिए कमा।’’
	वह फिर निश्चिंतता से जवाब दिया,‘‘दो-दो धाम करवा दिया। मुख्यमंत्री तीर्थयात्रा योजना में। उनके सारे पाप कट गए।’’
	‘‘वो कैसे? क्या तीर्थयात्रा करने से सारे पाप कट जाते हैं? फिर तो बढ़िया है। इधर पापकर्म करो और उधर तीर्थयात्रा करो। यह तो भगवान को धोखा देना हुआ।’’ मैंने तीर्थयात्रा पर सवाल खड़ा किया। 
इसपर वह उखड़ गया,‘‘तो क्या सरकार बेवकूफ है, जो तीर्थयात्रा करवा रही है?’’
	मैंने बात संभालते हुए विषयांतर किया, ‘‘अच्छा तो उनके मरने के बाद दाह-संस्कार के लिए कमाई कर ले दद्दा।’’	
इसपर वह बेफिक्री से जवाब दिया,‘‘जब एक रुपए में शवदाह गृह मिल जाता है, तब कोई बेवकूफ ही कमाता होगा?’’
	‘‘अपने बच्चों की शादी करने के लिए तो कमा’’ मैं मुस्कुराए बिना रह न सका। वह भी मुस्कुराकर वही जवाब दिया, जिसकी उम्मीद थी, ‘‘जैसी मेरी हुई है, वैसी उनकी भी होगी। फिर कमाने की क्या जरूरत?’’
	‘‘अच्छा, ये बता। तू अच्छे-अच्छे कपड़े कैसे पहनता है, रोज होटल में चाय-नाश्ता भी करता रहता है?’’ मैं हकीकत जानने के लिए उत्सुक हो उठा।
	वह मूंछों पर ताव देता हुआ बोला,‘‘पहले सरकारी जमीन पर कब्जा जमाता हूं। फिर आवास योजना में लोन व अनुदान लेता हूं। अनुदान खाता हॅूं। लोन नहीं पटाने से खाता तीन माह में अपनेआप एनपीए हो जाता है। कुछ साल बाद उसको बेचकर फिर बेजा कब्जा कर लेता हूंॅं और भेंट-पूजा कर पट्टा बना लेता हॅंूं। ऐसा मैं कई बार कर चुका हूं; क्योंकि आवास योजनाएॅं कई-कई आईं और चली गईं हैं।’’
	मैंने उसको कुरेदा, ‘‘लगता है तुम तो टैक्स भी नहीं देते हो और टैक्सपेयर के पैसे से गुलछर्रे उड़ाया करते हो।’’
इसपर वह उखड़ गया, ‘‘तुम जैसे बेअक्ल टैक्स भरते हैं। किसान मर-मरकर खेती करते हैं, इसलिए सरकारें उनकी मेहनत का सम्मान करते हुए उनसे धान 1800 रुपये क्विंटल में खरीदती है और हमें 1000 रुपये क्विंटल में चावल देती हैं। इसलिए कोई बताए। मैं क्यों करूं काम?’’
	मैं निरूत्तर हो गया। सोच में पड़ गया कि मुफ्तखोरी करनेवाले ऐसे शख्स आखिर क्यों करें काम?
			--00-
	अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर व पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है और लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है।
		

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