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अनोखा बैर

Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक अनोखा बैर, चौधराइन, मिश्राइन, जितेंद्र शर्मा की कहानी, दुश्मनी, शब्बो 96213 1 5 Hindi :: हिंदी

कहानी- "अनोखा बैर"
लेखक- जितेन्द्र शर्मा
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गोवर्धन चौधरी और बालकिशन मिश्र एक दूसरे के जन्मजात पड़ोसी थे। एक दूसरे के सुख-दुख में  काम आना अपना सौभाग्य समझते थे। अब जब वह अपनी अधेड अवस्था को पहुंच चुके थे तब तक भी कभी उनमें आपस में मामूली कहासुनी भी हुई हो ऐसा किसी को याद नहीं। सारा गांव उन्हे भले मानस व अच्छे पड़ोसी मानता था। किंतु दोनों की  पत्नियों का स्वभाव पूर्णतया अपने पतियों से विपरीत था। ऐसा लगता था जैसे दोनों में कोई पूर्व जन्म का बैर हो। छोटी-छोटी बातों को लेकर दोनों में कहासुनी शुरू हो जाती और शनै शनै वाकयुद्ध अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता जहां दोनों महिलाओं की ससुराल तथा पीहर पक्ष की तीन पीढ़ियों के सत्कर्मों का बखान होने तक युद्ध शांत न होता। इस युद्ध को उत्कर्ष तक पहुंचाने में प्राय शब्बो का भी विशेष योगदान होता, जो रहती तो दूसरे मोहल्ले में थी किन्तु दोनों ही घरों में साफ-सफाई का काम करती थी। शब्बो भले ही अनपढ़ थी लेकिन वाकपटु होने के साथ-साथ छोटी मोटी बातों को बढ़ा चढ़ा कर चढ़ाकर प्रस्तुत करना और उसका अपने हित में लाभ उठाना वह भली भांति जानती थी। मजेदार बात तो यह है कि सरला चौधराइन और वेदवती मिश्राइन दोनों ही शब्बो को अपना हितेषी मानती थी और उसके सिखाने बुझाने के बदले में दैनिक उपयोग कोई वस्तु उपहार स्वरूप शब्बो को मिल जाया करती। दोनों के युद्ध का पटाक्षेप बहुदा तभी होता था जब दोनों परिवार के मुखियाओं में से किसी एक के घर आने की सूचना मिलती। कुछ भी हो दोनों को अपने पति का तो मान था ही, एक दूसरे के पति का भी बहुत सम्मान करती थी। क्योंकि वे कभी उनके बीच कोई हस्तक्षेप न करते थे।
यूं तो वे दोनों आपस में झगड़ने का कोई कारण तलाश ही लेती थी लेकिन सबसे बड़ा कारण गोवरधन चौधरी की एक अच्छी आदत थी जिसे चौधराईन चाह कर भी छुडा न पाई थी। गोवर्धन चौधरी को साफ सफाई का बड़ा शौक था। वो प्रात: जल्दी जागते और अपने घर के सामने से शुरू होकर आधा मोहल्ला साफ कर देते। अब  चौधराईन को यह स्वीकार कहां कि उसके पति द्वारा साफ किये स्थान को कोई गन्दा कर दे। यह काम कोई भी करें किंतु चौधराइन का पहला शक मिश्राईन पर ही होता था और फिर शब्बो,  वह अवसर पाकर अपना काम पूरा कर देती और युद्ध के लिये प्लाट तैयार हो जाता। 
उन दोनों के पति अपनी पत्नियों के इस युद्ध से खिन्न तो रहते किन्तु वे जानते थे कि  उनकी पत्नियां मानने वाली नही है। आदत अच्छी हो या बुरी आसानी से कहां छूटती है। अत: दोनो ने स्वंय को इस विषय से विरक्त कर लिया था। और सदैव उनका एक दूसरे से व्यवहार सामान्य ही रहता। किंतु मिश्राइन का छोटा बेटा मोहन जो अब सोलह वर्ष का था और संसार को कुछ जानने समझने लगा था।वह समझता था कि सरला चौधराइन उसकी मां का अपमान करती है।  बेटा अपनी मां का अपमान कैसे सहे? इसलिए वह सदैव बदला लेने की ताक में रहता।
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चौधराइन को पशु पक्षियों से कुछ अधिक ही प्यार था। यूं तो उसका घर गाय भैंसों से‌ भरा हुआ था और उनकी देखभाल भी वह बडे मनोयोग से करती, किन्तु यदि घर में कुत्ता बिल्ली ना हो तो उसे अपना आंगन सूना सा लगता था। मोहल्ले भर के कुत्ते बिल्लियों को उसके आंगन में विचरण करने की पूरी छूट थी। अपनी माता के पशु प्रेम को जानकर चौधराईन के बडे बेटे ने कहीं से एक सुन्दर सा पिल्ला लाकर दिया। चौधराइन की देखभाल और स्नेह ने उस नन्हे से प्राणी को छह माह मे ही एक बलिष्ठ और सुन्दर कुत्ता बना दिया। शक्तिशाली इतना कि अवसर मिले तो अच्छे मजबूत व्यक्ति को पकड कर भंभोड दे और सुन्दर इतना कि किसी कुत्ता प्रेमी की नजर पडे तो वह उसे मनचाही कीमत पर खरीदना चाहे। चौधराइन को जितना प्रेम कुत्ते से था उतना ही कुत्ता भी चौधराईन का वफादार था। चौधराइन यदि उसे मोती कहकर किसी की ओर आक्रमण करने का इशारा कर दे तो मोती तुरन्त उसके प्राण लेने पर अमादा हो जाय। वह प्यार से पुचकार भर दे तो मोती उसके पैरों में लोट जाये। अब चौधराईन का पशु प्रेम घमण्ड में बदल चुका था। वह गर्व से कहती कि मोती जैसा कीमती जानवर किसी के पास नही। 
मोती भी अपनी मालकिन के मनोभाव को सम्भवतः समझ गया था। वह घर के मुख्यद्वार के पास बंधा रहता और घर में मौहल्ले भर से कोई आये उसे कोई आपत्ती न थी। किन्तु जब भी मिश्राइन उसकी नजरों के सामने से गुजरती वह भौंकना शुरू कर देता और जब तक वह दिखाई देती रहती वह रस्सी तुडाकर उसपर आक्रमण करने का भरसक प्रयास करता। जहां यह मिश्राइन को क्रोधित करता वहीं चौधराईन के लिये यह आनन्ददायक पल होता। मिश्राइन के बेटे मोहन के लिये तो यह सब असहनीय था। यद्यपि मोती मोहन पर कभी न भौंका था। फिर भी माता का अपमान -----!
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अंतत: एक दिन मोहन को अवसर मिल ही गया। अपने एक दोस्त के साथ मिलकर उसने मोती को कुछ सुंघाकर बेहोश किया और एक बोरे में भर कर उठा ले गया। उस समय चौधराइन किसी काम से कहीं गई हुई थी। वापस लौटी तो मोती को न पाकर सन्न रह गई। पूरे गांव में मोती की खोज हुई किंतु मोती को ना मिलना था, ना मिला। चौधराइन को विश्वास हो गया कि अब उसका प्यारा मोती कभी नहीं मिलेगा, अतः उसके बिछोह में चौधराइन विरहनी सी हो गई। खाना पीना तक त्याग दिया और खाट पकड़ ली। मिश्राईन अचंभित थी, उसने चौधराइन को दो दिन से नहीं देखा था। शब्बों ने उसे बताया कि चौधराइन का मोती कहीं खो गया है, जिसके गम में वह बस रोए जा रही है । मिश्राईन को यह सुनकर अलग तरह का अनुभव हुआ। उसको लगा मानो उसका कुछ खो गया हो, बार-बार मन करता कि वह भी चौधराइन के पास जाए और उसे सांत्वना दें, किंतु पैर न पड़ते थे।
भोजन का समय था, मिश्राईन  का बेटा मोहन उसके पास बैठा खाना खा रहा था कि बात चल निकली, मिश्राईन ने बेटे की ओर मुह करके कहा- ‘’पता नहीं कोन सरला के कुत्ते को उठा ले गया? बेचारी उसके गम मे कुछ खाती है न पीती है।‘’
‘’तू भी उसके घर गयी थी क्या अम्मा?’’ मोहन ने पूछा।
‘’मन तो बहुत किया पर जा न सकी, मेरे जाने से क्या होता? जब पूरे गांव के जाने से उसका दुख कम न हुआ तो मेरे जाने से क्या होता?  वैसे भी मुझे तो वह अपना दुश्मन मानती है।‘’ मिश्राईन ने गहरी सांस लेकर कहा।
"भाड़ में जाए हमें क्या? वो अब मरे या जिए, कुत्ता तो अब मिलने से रहा।" मोहन ने कुछ रोष भरे स्वर में कहा। जिसे सुनकर मिश्राइन को धक्का सा लगा। बोली- "लल्ला कहीं तूने ही तो कुछ नहीं किया?"
अपनी माता की बात सुनकर मोहन पूरी तरह चिढ़ गया। झुंझला कर बोला- "अम्मा तू तो मुझे ही भला-बुरा कहती है, जो तुझ से बात बात पर लड़ती है उसकी ही होड ले रही है। अगर मैंने उस कुत्ते को उठा भी लिया तो क्या बुरा किया? वह भी तो अपनी मालकिन की तरह रोज रोज तुझ पर पर भौकता है।‘’
बेटे की बात सुनकर मिश्राईन सन्न रह गई। उसे विश्वास नहीं था कि उसका बेटा ऐसी हरकत करेगा। उसकी आंखों से आंसू बह निकले करूणा भरी आवाज में बोली- ‘’क्या तूने चुराया उसके मोती को? मेरा बेटा और इतना नीच? अरे दुष्ट इतनी नीचता कहां से लाया तू? हाय! मैं दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगी?
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उधर शब्बो जो कि उस समय मिश्राईन के घर में ही सफाई का कार्य कर रही थी, उसने सारी बात सुनी और चुपके से चौधराइन के घर की ओर दौड़ पड़ी। सब्बों ने चौधराइन को सारा हाल कह सुनाया। चौधराइन जो कि खाना पीना ठीक से न होने के कारण कुछ दुबली हो गई थी जल्दी से उठकर बैठ गई और बोली- "सच- सच बोल शब्बो! अगर इसमे जरा भी झूंठ  निकाला तो तेरी खैर नहीं।" 
शब्बो कोई उत्तर देती उससे पहले ही बाहर से चीखने-चिल्लाने की आवाज आने लगी। उत्सुकता के कारण चोधराईन पर रुका न गया। कमजोर होने पर भी वह तेजी से बाहर की ओर चली। वह बाहर निकल पाती उससे पहले ही मिश्राईन उसके आंगन में कदम रख चुकी थी। उसके हाथ में एक मोटा डंडा था जिससे वह अपने बेटे मोहन को मार रही थी, जो रोता हुआ उससे आगे आगे चल रहा था। चौधराइन को सामने देखकर मिश्राइन ने अपने बेटे को जोर का धक्का दिया और बोली- ले सरला- यह रहा तेरा चोर, इसी ने तेरे मोती को उठाया है। पुलिस को दे या फांसी लगा दे,  कुछ भी कर मैं उफ न  करूंगी। आज से यह मेरा बेटा नहीं,  मैं इसकी मां नहीं। 
यह सुनकर चौधराइन अवाक रह गई, उसने अपने पैरों से लिपटे मोहन को देखा जो बार-बार कह रहा था-"काकी मुझे माफ कर दे! मैंने बड़ा पाप किया है!"
चौधराइन का ह्रदय द्रवित हो उठा। उसकी आंख भर आई। नीचे झुककर उसने मोहन को उठाया को हृदय से लगा कर बोली- ‘’चुप हो जा बेटे! मैंने तुझे माफ किया!बस इतना बता दें कि कहीं तूने मेरे मोती को मार तो नहीं दिया?’’
‘’नहीं काकी मैंने उसे मारा नहीं है! अपने एक दोस्त को दे दिया है! मैं आज ही उसे वापस मंगा लूंगा! आप मेरी मां से कहो कि वह मुझे माफ कर दे! मैं ऐसा काम अब कभी नहीं करूंगा।‘’
चौधराइन आगे बढ़ी और मिश्राइन को गले से लगाा लिया। दोनों  एक दूसरे के गले लग कर इस प्रकार रो रही थी जैसे की दो बिछड़ी हुई सगी बहनें वर्षों बाद आपस में मिली हों । मोहन और शब्बो उन्हे आश्चर्य से निहार रहे थे।
‘’सम्पूर्ण’’


Comments & Reviews

Jitendra Sharma
Jitendra Sharma बहुत सुन्दर कहानी।

1 year ago

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