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क्यों तू जी रहा है अकेला -जहां लोग छल-कपट से परे हो

Rameez Raja 08 Feb 2024 कविताएँ समाजिक क्यों तू जी रहा है अकेला ? 10202 0 Hindi :: हिंदी

जीना चाहता था मैं एक ऐसी दुनिया में,
जहां लोग छल-कपट से परे हो,
समझे सभी को अपने,
बनकर जिए और समझे अपने ।

सोचता-सोचता बस बनकर रह गया मुसाफ़िर अकेला,
पहचाना और जाना लोगों में है स्वार्थ भरा,
एक दूसरे से करे छल-प्रपंच,
न है किसी में आपसी साजे धारी,
बस लगे है सभी अपना ही उल्लू सीधा करने में सारी,
हैं यह कैसे जन-मानस अब सारे।

कहूं सभी से ओ ! मनुष्य रुक जा ज़रा,
ठहर जा , संभल जा, है अभी भी आशाएं,
एक दिन जब कोई नहीं रहेगा तेरे संग,
न देगा कोई तेरा साथ,
याद आएगी तब तुझे लोगों के रिश्ते-नाते, सोचेगा कि क्यों तू सिर्फ बनकर रहगया अकेला इन सब में ।
 
अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगा हुआ है, 
आखिर कब तक रहेगा तू ऐसे अकेला ,
पहचान और देख अपने अस्तित्व को और जाग कर बढ़ आगे चल, समझे सभी को अपना और बन सबका अपना प्यारा।

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