राकेश 30 May 2023 कविताएँ समाजिक कर्जा, कर्ज का बोझ, 6160 0 Hindi :: हिंदी
कर्ज का बोझ मनुष्य को देता है झकझोर, अपने या अपनों के लिए मजबूरी में लेना ही पड़ता कर्ज है, धन के बिना जीवन चलाने का साधन नहीं है कोई और। धनी को अपने मूल ब्याज से मतलब, कर्जदार के पूरे परिवार का निकल जाए चाहे दम। बैंक तो बिल्कुल भी नहीं करता रहम, कर्जदार के मरने के बाद भी कुड़की कर देता है उसका घर। सरकार और धनी करें गरीब की मदद तो गरीब का बच सकता है परिवार और घर।