संदीप कुमार सिंह 02 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5896 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद) धीरे धीरे ही सही,करता रहूं विकास। छू लूं नभ को एक दिन,फिर भी कमें न आस। अपनो का मधु प्यार हो,खुशियाँ रहे अकूत_ सपने सब मंसूब हो,सब साधन हो पास। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....