Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक चुपी 6589 0 Hindi :: हिंदी
चुपी जब मैं बच्ची थी माँ कहती चुप हो जा बचिच्यां इतना नहीं बोलती थोड़ी बड़ी हुई तब भी माँ ने ये ही कहा चुप हो जा लड़कियां इतना नहीं बोलती जब बड़ी हो गई तब भी माँ ने ये ही कहा चुप हो जा अब जवान हो गई दूसरे के घर जाना हैं जब शादी हो गई सास ने भी ये ही कहा चुप हो जा तेरी मायका नहीं हैं पति ने भी ये ही कहा क्यों बोलती हैं तू चुप हो जा जब बिढ़ियाँ हो गई बच्चे कहते हैं बुढ़िया क्यों बोलती हैं तेरा क्या काम चुप हो जा मैं इस चुपी को अब ममोड़ना चाहती हूँ दिल में जो हैं जोर जोर से बोलना चाहती हूँ क्यों हैं ये चुपी इसको झटक के तोडना चाहती हूँ जोर जोर से चिलाना एक बार मैं भी जीना चाहती हूँ पर डरती हूँ अब दरबाजे पे यमराज खड़ा है कही सुन न ले इस लिए चुप ही रहती हूँ