Raj Ashok 17 Nov 2023 कविताएँ दुःखद उड़ते छल्ले 10045 0 Hindi :: हिंदी
मंत पुँछ, नशें मे, ... .. कैसे सालों तक मैं जीया ? हवा मे उड़ते छल्ले से ये घुंऐ के गुंबार किस्मत की बेरुखी , और अपनो के तानों ने ये नायाब शौक मुझें दिया। अब, कामयाब, नहीं रहें । मेरे कदम , भाग -दोड़ मे थक से गए है। टुट सा गया हे। दम मेरी इस लाचार सी आदत से तड़फती आत्मा दो घुंट शांखी को तरस्ती है। जब से आदत ये बदल ने का फैसला मैने लिया। संघर्ष मेरा खूद मे बढ गया है। हर पल बेचैन रहता हूँ। जैसे किसी ने प्यार मे दंगा दिया है।