Poonam Mishra 27 May 2023 कहानियाँ समाजिक एक पिता के मन की व्यथा जो अपनी बेटी को बहुत ही प्यार करता है 6316 0 Hindi :: हिंदी
मेरी शादी के करीब बन 4 साल हो गए हैं और मैं एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर रही थी मेरी एक छोटी सी नन्ही परी भी है जो अभी 2 महीने की है मैं और राघव उससे बहुत प्यार करते हैं माँ का तो वैसे रोज ही फोन आता है आज अचानक पता नहीं माँ ने बहुत ही दुखी मन से फोन किया और कहा कि आ जाओ !तुम्हारे पापा तुम्हें याद कर रहे हैं ! उनकी तबीयत ठीक नहीं है । मैं यह सुनते ही अपना सामान पैक करके वाराणसी के लिए खाना हो गई। रास्ते भर मै ट्रेन में सोचती रही कि पापा तो मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी उनसे बहुत प्यार करती हूं l फिर भी न जाने क्यों ?माँ हम दोनों के बीच में एक दूरी हमेशा से बनाए रखने का प्रयास करती रहीl इस बात को मैं समझ नहीं पाई आखिर क्यों ? जबकि मेरी माँ पापा का पूरा ख्याल रखती थी । और मेरा भी पूरा ख्याल रखती थी और पापा भी मुझे बहुत प्यार करते थे फिर भी माँ एक डिस्टेंस में रखना चाहती थी। मुझे और मेरे पापा को मैं जैसे-जैसे बड़ी होती गई इन सब बातों को समझती गईl लेकिन पापा का प्यार मेरे प्रति बहुत ही ज्यादा था मैं शादी के बाद अपनी नई घर में रच बस गई मुझे एक बहुत ही प्यार करने वाला पति मिला इसके साथ में अपनी एक खुशहाल जिंदगी गुजार रही थी l जैसे-जैसे ट्रेन वाराणसी के पास पहुंचती गई मन में न जाने क्यों? तरह-तरह के ख्याल आते गए माँ ने मुझे फोन पर बताया था कि बगल में मिश्रा अंकल के घर से चाबी लेकर के सामान घर पर रख देना और हॉस्पिटल चली आना क्योंकि हम और पापा दोनों हॉस्पिटल में ही है । मैं अपनी छोटी बच्ची को लेकर की मैं वाराणसी स्टेशन से उतर कर सीधे मैं मिश्रा अंकल के घर जाकर उनसे चाबी लिया और चाबी लेकर जैसे मैं बाहर निकलने लगी तब से मुझे आवाज सुनाई दी कि अंकल आंटी आपस में बात कर रहे थे और कह रहे थे "अगर अपनी बेटी होती तो इतनी देर" में इतने दिन के बाद' अपने पापा से मिलने थोड़ी ना आती ? रमेश तो कितना प्यार करता है इन दोनों माँ ;बेटी ;को मुझे यह सुनकर के एक अजीब सा झटका लगा! मैं समझ नहीं पा रही थी यह दोनों आपस में क्या बात कर रहे हैं ? मेरा मन हुआ कि दौड़कर, जाकर मैं उन लोगों से पूछे कि अपनी बेटी मतलब मैं किसकी बेटी हूं ? क्योंकि मेरी माँ की वह बहुत ही अच्छी दोस्त थी और मेरी माँ उन पर बहुत विश्वास करती थी क्योंकि मैं बचपन मैं कभी-कभी भी उनके घर पर रहा करती थी। इसलिए मैं उनसे किसी तरह का जवाब सवाल नहीं करना चाहती । मैं उन्हें भी अपनी माँ की तरह ही सम्मान देती थी । और मैं चाबी लेकर के अपने घर पहुंचकर गेट खोल करके सीधे अपने घर के अंदर पहुंच गई मेरे कानों में उनकी आवाज बार-बार गूंज रही थी आखिर अपनी बेटी का क्या मतलब हुआ न जाने क्यों? मन में यह ख्याल करते-करते मैं पापा के कमरे का दरवाजा खोलकर उनके कमरे में जाने लगी। उस कमरे में जाने कि मुझे ज्यादातर मना किया जाता था क्योंकि मेरे पापा किताबे लिखते हैं पढ़ते लिखते थे और वह टीचर हैं ।इसलिए उनका पढ़ना लिखना काम था और माँ की सख्त हिदायत थी कि पापा के रूम में जाकर किसी सामान को नहीं छूना है । तो मैं बहुत कम ही पापा के रूम में जाती थी माँने कुछ सामान पापा के मंगवाए थे । आज न जाने क्यों मेरा मन बहुत विचलित हो रहा था मैंने पापा के रूम का दरवाजा खोला पापा के रूम में जाकर मैं सोचने लगी मैं कौन हूं ?पापा कौन है? मैं जाकर पापा के रूम में उनके चेयर पर बैठ कर इधर-उधर देखने लगी। मैंने देखा कि पापा की एक डायरी टेबल पर थी मैंने अक्सर देखा था कि पापा रात में सोते समय। अपनी डायरी में कुछ लिखते हैं उसके बाद अपने रूम में सोने चले जाते हैं ।उनकी डायरी को छूने का किसी को भी अधिकार नहीं था l वह डायरी लिखते थे माँ भी उनकी डायरी को नहीं पढ़ती थी मुझे भी उस डायरी को छूने का हक नहीं था न जाने क्यों? मन में इच्छा हुई कि पापा की डायरी मैं पढ लु आज क्योंकि? मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे मन में न जाने कैसे-कैसे विचार आ रहे थे !कांपते हुए हाथों से मैंने पापा की डायरी उठाई !और पढ़ना शुरू कर दिया !न जाने क्यों दिल में इतना शोर हो रहा था मैंने देखा कि उन्होंने डायरी हर दिन की बारे में कुछ न कुछ लिखा था। जिसमें उन्होंने मेरी माँ से मिलने का प्रथम दिन से लेकर के शुरुआत किया था। मेरी मां का नाम पूनम है और वह देखने में बहुत ही खूबसूरत है पापा ने उनकी खूबसूरती का बहुत ही वर्णन किया है अपनी डायरी में कई कविताएं गजल शायरी उनकी खूबसूरती पर मैंने देखा कि उन्होंने लिख छोड़ा था मुझे न जाने क्यों यह सब चीजें पढ़ने में कोई भी रुचि नहीं थी? मैं बस अपने सवालों का जवाब ढूंढना चाहती थी . अचानक मेरी निगाह एक पेज पर पड़ी जिसको मैं पढ़कर ठहर सी गई,,,,,,,,,,,,,,, शेष भाग अगले दिन