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कुबेर का घर-पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं जल अन्न और सुभाषित

DINESH KUMAR KEER 30 Jun 2023 कहानियाँ अन्य 6072 0 Hindi :: हिंदी

कुबेर का घर

     एक साधु, विचित्र स्वभाव का था। वह बोलता कम था। उसके बोलने का ढंग भी अजीब था। उनकी माँग सुनकर सब लोग हँसते थे।
     कोई चिढ़ जाता था, तो कोई उसकी माँग सुनी अनुसनी कर अपने काम में जुट जाता था।
     साधु प्रत्येक घर के सामने खड़ा होकर पुकारता।
     माई! अंजुलि भर मोती देना... ईश्वर, तुम्हारा कल्याण करेगा... भला करेगा।'
     साधु की यह विचित्र माँग सुनकर स्त्रियाँ चकित हो उठती थीं। वे कहती थीं - 'बाबा! यहाँ तो पेट भरने के लाले पड़े हैं। तुम्हें इतने ढे़र सारे मोती कहाँ से दे सकेंगे।
     किसी राजमहल में जाकर मोती माँगना। जाओ बाबा, जाओ... आगे बढ़ो...।'
     साधु को खाली हाथ, गाँव छोड़ता देख एक बुढ़िया को उस पर दया आई। बुढ़िया ने साधु को पास बुलाया।
     उसकी हथेली पर एक नन्हा सा मोती रखकर वह बोली:- साधु महाराज! मेरे पास अंजुलि भर मोती तो नहीं हैं। नाक की नथनी टूटी, तो यह एक मोती मिला है। मैंने इसे संभालकर रखा था। यह मोती ले लो। मेरे पास एक मोती है, ऐसा मेरे मन को गर्व तो नहीं होगा। इसलिए तुम्हें सौंप रही हूँ। कृपा कर इसे स्वीकार करें। हमारे गाँव से, खाली हाथ मत जाना।'
     बुढ़िया के हाथ का नन्हा सा मोती देखकर साधु हँसने लगा।
     उसने कहा, 'माताजी! यह छोटा मोती मैं अपनी फटी हुई झोली में कहाँ रखूँ? इसे आप अपने ही पास रखना।'
     ऐसा कहकर साधु उस गाँव के बाहर निकल पड़ा। दूसरे गाँव में आकर साधु प्रत्येक घर के सामने खड़ा होकर पुकारने लगा...!
     माताजी प्याली भर मोती देना। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करेगा।'
     साधु की यह विचित्र माँग सुनकर वहाँ की स्त्रियाँ भी अचंभित हो उठीं। वहाँ भी साधु को प्याली भर मोती नहीं मिले।
     अंत में निराश होकर वह वहाँ से भी खाली हाथ जाने लगा।
     उस गाँव के एक छोर में किसान का एक ही घर था। वहाँ मोती माँगने की चाह उसे घर के सामने ले गई।
     माताजी! प्याली भर मोती देना... ईश्वर, तुम्हारा भला करेगा। साधु ने पुकार लगाई।
     किसान सहसा बाहर आया। ‍उसने साधु के लिए ओसारे में चादर बिछाई। और साधु से विनती की, कि...!
     साधु महाराज, पधारिए... विराजमान होइए।' किसान ने साधु को प्रणाम किया और मुड़कर पत्नी को आवाज दी...!
     श्यामा, बाहर साधु जी आए हैं। इनके दर्शन कर लो। किसान की पत्नी तुरंत बाहर आई। उसने साधुजी के पाँव धोकर दर्शन किए।
     किसान ने कहा- 'देख श्यामा, साधुजी बहुत भूखे हैं। इनके भोजन की तुरंत व्यवस्था करना।
     अंजुलि भर मोती लेकर पीसना, और उसकी रोटियाँ बनाना। तब तक मैं मोतियों की गागर लेकर आता हूँ।' ऐसा कहकर वह किसान खाली गागर लेकर घर के बाहर निकला। 
     कुछ समय पश्चात किसान लौट आया। तब तक लक्ष्मी ने भोजन बनाकर तैयार कर रखा था।
     साधु ने पेट भर भोजन किया। वह प्रसन्न हुआ। उसने हँसकर किसान से कहा... 'बहुत दिनों बाद कुबेर के घर का भोजन मिला है। मैं बहुत प्रसन्न हूँ।
     अब तुम्हारी याद आती रहे, इसलिए मुझे कान भर मोती देना। मैं तुम दंपति को सदैव याद करूँगा। 'उस पर किसान ने हँसकर कहा - 'साधु महाराज! मैं अनपढ़ किसान, आपको कान भर मोती कैसे दे सकता हूँ?
     आप ज्ञान संपन्न हैं। इस कारण "हम" दोनों आपसे कान भर मोतियों की अपेक्षा रखते हैं।'
     साधु ने आँखें बन्द कर कहा - 'नहीं किसान राजा, तुम अनपढ़ नहीं हो। तुम तो विद्वान हो। इस कारण तुम मेरी इच्छा पूरी करने में सक्षम रहे। 
     मेरी विचित्र माँग पूरी होने तक मैं हमेशा भूखा - प्यासा हूँ। जब तुम जैसा कोई कुबेर भंडारी मिल जाता है तो मै, पेट भरकर भोजन कर लेता हूँ।
     साधु ने, किसान की ओर देखा और कहा- "जो फसल के दानों, पानी की बूँदों और उपदेश के शब्दों को मोती समझता है। वही मेरी दृष्टि से सच्चा कुबेर का घर है।
     मैं वहाँ पेट भरकर भोजन करता हूँ। फिर वह भोजन दाल - रोटी हो या चटनी रोटी। प्रसन्नता का नमक उसमें स्वाद भर देता है।
     जहाँ आतिथ्‍य का वास है। वहाँ मुझे भोजन अवश्य मिल जाता है। अच्छा, अब मुझे चलने की अन‍ुमति दे। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे।'
     किसान दंपत्ति को आशीर्वाद देकर साधु महाराज आगे चल पड़ा। कहा 
  


     पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित। मूर्ख लोग ही पत्थर के टुकड़ों हीरे, मोती माणिक्य आदि को रत्न कहते हैं।

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