Atul kumar Gupta 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Atul Gupta kvita 16501 0 Hindi :: हिंदी
जिंदगी जीने के तौर सिख रहा हूं, रिश्तों को निभाने का कला सिख रहा हूं प्यार और दिखवा का सच सिख रहा हूं नफरत और झूठ का खेल सिख रहा हूं जिंदगी जीने का तौर सिख रहा हूं। अपमान और दर्द का एहसास सिख रहा हूं अपनों और गैरों की पहचान सिख रहा हूं तानों और तारीफों का फर्क सिख रहा हूं खुशी और दुःख के आशुओं का हिसाब सिख रहा हूं जिंदगी जीने का तौर सिख रहा हूं।। किताबों और खिलौनों का सुख देख रहा हूं जवानी और बुढ़ापे का दुख देख रहा हूं महफ़िल और अकेलपन का दौर देख रहा हूं बाजारों में रिश्तों के भाव देख रहा हूं। जिंदगी जीने का तौर सिख रहा हूं।।। एहसासों के हर पल को लिखना सिख रहा हूं अपना बोलकर पराया होता देख रहा हूं प्यार को बाजार में बिकता देख रहा हूं पैसों को सांसो की कीमत होता देख रहा हूं जिंदगी जीने का तौर सिख रहा हूं।।।