अशोक दीप 30 Mar 2023 गीत समाजिक Samajik kavita, sad poetry 10678 0 Hindi :: हिंदी
मेरी आँख वहाँ रोती है । विस्थापित-सा जीवन जीकर कर्कश बोलों का विष पीकर अपने ही जर्जर कंधों पर ममता लाश जहाँ ढोती है । मेरी आँख वहाँ रोती है । आग पेट की शम करने को आँतें सूखी नम करने को दुख का पर्वत रख छाती पर तरुणी लाज जहाँ खोती है । मेरी आँख वहाँ रोती है । न्याय धर्म को धता बताकर रिश्वत को निज अंग लगाकर जिस्म चाटने वाले मुँह से लॉ की बात जहाँ होती है । मेरी आँख वहाँ रोती है । ००० अशोक दीप जयपुर