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रश्मी रथी बनु

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is based on hope for preparing Custom of Chariot to rider that means Rashmi Rathi. 16181 0 Hindi :: हिंदी

समा बांध अविराम करे, 
आशाओं के चाहत पल पल! 
नयनो के गतीमय प्रगतीमान, 
उठती है दर्रख्तें कल कल कल!! 
                     अती अती अतिश्य चर्म कर्म, 
                     फलवाहक का अवकाश लिए! 
                     छन्न न्नन छन छन करती है, 
                     आशा और निराशा साथ लिए!! 
दिप्त दिप्त जलती धुनी, 
भविष्य आज मे ढुंढ रही! 
मन्द मन्द कवी हस्त कला, 
अधिकाधिक कर्म को पुज रही!! 
                       शाखों की र्नम हवा चल कर, 
                       सन् न्नन सन्न सन सन्ननन्न! 
                       देना झुंक कर सिखलाती है, 
                       जो चकाचौंध प्रवस्ती मे मानवता 
                                    कहलाती है!! 
आजाद विश्व मे खिल उठता, 
ये कला ज्ञान कि पर्म दृष्टी! 
स्वार रहे मन के वारे, 
हिन्दुत्व जगत की दिव्य सृष्टी!! 
              कल कि कल्पनाओं को आज ने, 
              राज से है नाराज किया! 
              कवियों ने कर्म कि झल्कों से, 
              धरा को कभी कल कभी आज दिया!! 
आज आज करने वाले, 
कल को कल मे भुलातें है! 
हम कल और आज मे कर कर के, 
ईक नया सुबह दिखलातें हैं!! 
                     देख रश्म के रथ को चला रहा, 
                     रश्मीरथी है ताज अपना! 
                    कर्म ही अपना बिता कल, 
                    और धर्म बनेगा आज अपना!! 
न थकी तपो मन जपने से, 
कि कर्माकार ओमकार जय हरे हरे! 
कर्म का होगा सफल स्वपन, 
तो गिरेंगें जड़ीत वट हरे - हरे!! 
                     न भय न मै संताप रखूं, 
                    बस धर्म से ईतनी चाहत है! 
                    दे विधा बल मित्र किरणों सा, 
                    कि मै भी रश्मीरथी बनु!! 
अतिश्य है कल्पना वसुधा कि, 
धुली को पुज्य बनाना है! 
ईस कली के कलयुग के सारे कर्म को, 
फिर सत्युग दिखलाना है!! 
                   पर किश्मत को देखती आशाऐं, 
                   फल को ढुंढती है पल पल! 
                   नयनो के गतीमय प्रगतीमान, 
                   उठती हैं दर्रख्तें कल कल कल!! 

Writer :- Amit Kumar Prasad
लेखक  :-  अमित कुमार प्रशाद

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