संदीप कुमार सिंह 13 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 12123 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" काला है कुछ दाल में,बाहर से है रंग। लौटे जो बेरंग हो,देख सभी हो दंग।। काला है कुछ दाल में,आँखों में है नूर। मोहित होता यार जो,होता है मजबूर।। काला है कुछ दाल में,करे सियासत खेल। घोटाला में लिप्त सब,आपस में कर मेल।। काला है कुछ दाल में,दुश्मन अब है दोस्त। दोनों मिलकर राज का,नोचेगा अब पोस्त।। काला है कुछ दाल में,दिखा रहा है प्यार। ले लेगा धन प्यार से,छीने सब अधिकार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....