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नये कवि की नई रचना

Pradeep singh " gwalya " 01 Apr 2024 कविताएँ अन्य Psdrishti.blogspot.com प्रदीप सिंह ग्वल्या 1907 2 5 Hindi :: हिंदी

एक दिन वह था सोच रहा
समय का कुछ उपयोग करूँ
कविता जैसा कुछ तो रचूँ
काग़ज में खुद को ब्यक्त करूँ 
जो अंतर्मन यूँ ढूंढ रहा
उसको भी मैं पहचान सकूँ।। 

कभी पहले उसने लिखा नहीं
तो काब्य चक्षु अभी खुला नहीं
जब लगी छलाँग तो पता चला
गहराई तो सागर की पता ही नहीं।। 

न छंद सही ना रस सही
न अलंकार और ना लय सही
अभी जो लिखना शुरू किया है
तो फिर कैसे होंगे भाव सही।। 

महसूस किया लेखन को जब
कुछ एक काब्य पाठ सुने
कम शब्द चुने शसक्त चुने
कुछ पंक्तियाँ पूर्ण प्रवाह बुने 
फिर काम किया तुकबंदी पर जो
कविता की रसधार बने।। 

अब हुआ कार्य इस कविता का
तब कवि था चौदिश झूम रहा
कि कहाँ प्रस्तुत कहाँ रखूँ
किस मंच और महफ़िल इसे पढ़ूँ
यह रह ना जाए मुझ तक सीमित
कैसे इसका मैं उद्धार करूँ।। 

जब मंच दिखे कोई बड़ा इसे
तब शायद इसको जगह मिले
पड़ी रही इक कोने में मानो
उठने की ना वजह मिले।। 

ये सब मंझे हुए खिलाडी हैं
तू कुछ तो टक्कर दे रहा है
क्यूँ अभी से थककर बैठा है
अभी अभी तेरी सुबह हुई है
तू बस उठकर ही तो बैठा है।। 

फिर सोचा दिल पर हाथ रखा
समझाया खुद को बना सखा
ये इन मंचों पर क्या ही रखा
तू कर अब काब्य अलंकृत इतना
कि करे इशारे होए बखान।। 

पर यहाँ हर मोड़ पे असुर खड़े हैं
और आलोचक भी भरे पड़े हैं
उन सबसे हमको बचना है
क्योंकि..... 
यह नये कवि की नई रचना है।। 

                  ✍️  प्रदीप सिंह "ग्वल्या"

Comments & Reviews

Bholenath sharma
Bholenath sharma वाह भाई बहुत सुन्दर

3 weeks ago

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Pradeep singh " gwalya "
Pradeep singh " gwalya " Thank u bholenath bhai 🙏

3 weeks ago

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