Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #नियति 17409 0 Hindi :: हिंदी
नियति का न कोंई तोड़ ! नियति जब खोले पोल !! हवस की गठरी भर नहीं पाए ! कर्म की लेखी मिट नहीं पाए !! कर्म के जैसे बीज लगाए ! फूट के वो ही बाहर आए !! कुदरत का न इसमें रोल ! तेरे कर्मों का ही मोल !! वक्त ए तराजू की है तोल ! इसमे न है कोंई झोल !! नियति का न कोंई तोड़ ! नियति जब खोले पोल !! सौंदर्य प्रकृति का हमने बिगाड़ा ! गंगा जल में जहर है डाला !! नदियों का आकार घटाया ! वनों को हमने बौना बनाया !! कुदरत का किया उपहास ! अपने कर्मों की है मार !! कुदरत का न इसमें दोष ! हमने खो दिए अपने होश !! हमारे गुनाह रहे हैं बोल ! अब तो अपनी आँखे खोल !! नियति का न कोंई तोड़ ! नियति जब खोले पोल !! विपिन बंसल