Tulasi Seth 23 Apr 2023 कविताएँ समाजिक समाजिक कविता 10039 0 Hindi :: हिंदी
क्युं जाति के नाम पर गुनाह हजारों पल रहे हैं, उच्च नीच की तराजू में नित तोल रहे हैं । क्या ठप्पा लगाकर आए थे सब के मैं धनी तु निर्धन है, मैं ज्ञानी तु अनपढ़ है, मैं उच्च कूल का और तु कूलिन है । भगवान ने तो जिव वनाए ये जात की जाल तो जिव ने वुने अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिए उसने जात की प्रकार है चुने। जाति तो है वस मानव जाति जिसके उपर चांद भी एक और सूरज भी एक शरीर में बहता पानी भी एक लाल खुन भी बहता एक। फिर क्यों आपस में लड़के मरे जीवन है कितना अनमोल सुंदर आओ इसको खुशी से जिएं।