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दौलत के अंधे

Rambriksh Bahadurpuri 20 Mar 2024 कविताएँ समाजिक #Rambriksh Bahadurpuri #Rambriksh Bahadurpuri kavita#daulat per kavita #Ambedkarnagar poetry 3040 0 Hindi :: हिंदी

दौलत में अंधे

हे!
दौलत में अंधे
क्या पता नहीं है
जाएगा न साथ एक भी
रिस्वत हो या चंदे,
यह दौलत है
कोई जमीर नहीं
जो अजर है
अमर है
कोई अक्षीण नहीं। 

किसी का 
गला काट कर
किसी का
तलवा चाट कर
किसी के पेट पर
लात मारकर
उगा रहा है
झूठ का पेड़ 
किसी रेत पर
दौलत रखने वाला
कोई फकीर नहीं है। 

झोंक रहा क्यों?
धूल आंख में
हर पल
हर दिन
कभी रात में
तोड़ रहे विश्वास
भरोसा
मासूमों के
नहीं ख्याल है
रक्तिम बढ़ते
नाखूनों के
कृत घिनौना
उत्तम जीवन का 
कोई प्राचीर नहीं है। 

देखा है
ढहते ढलते
इतिहास धरोहर
साबूत
मजबूत
जागीर मनोहर
फिर क्यों?
बोता बीज
जहर का
नशे में
दौलत खातिर
यह दौलत है
कोई नजीर नहीं। 

              रचनाकार
         रामबृक्ष बहादुरपुरी
     अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश

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