MAHESH 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मजदूर 7563 0 Hindi :: हिंदी
स्वरचित रचना--- वह तो मजदूर है ....! संदर्भ--- मजदूर जिनकी पेशानी के बल पर इस संसार की संरचना होती है। ऐसे उन असंख्य मजदूरों की पीड़ा में यह कविता होती है! वह तो मजदूर है, वह तो मजदूर है! जिसकी क़िस्मत चमकना, कोसों दूर है। वह तो मजदूर है, वह तो मजदूर है।। जिसके बारे न सोचा, कोई हुजूर है। वह तो मजदूर है, वह तो मजदूर है। जिसके जीवन का है, यह फसाना सुनो। सुबह जाना, शाम को है आना सुनो। पत्थरों से कहीं, टकराना सुनो। ठोकरों में है, जीवन बिताना सुनो। खेत-खलिहानों में, कल-कारखानों में। नदियों, झीलों व कोयले की खादानों में। होके पेशानी के, बूंदों से तर-बतर, लौटता सांझ को,जो पत्थर चूर है। वह तो मजदूर है, वह तो मजदूर है। जानें आई गईं, कितनी सरकारें हैं। दे गईं कितनों को, अनगिन उपहारें हैं। कोई सत्ता में आया, किसानों के हित। कोई भत्ता दिलाए, जवानों के हित। कोई फ्री बांटता है, हर इक चीज़ को। कोई है माफ करता, यहां लोन को। हर कोई के लिए, है एक सुविधा यहां। केवल मजदूर ही बस एक दुविधा यहां। राजनीति को आता, नहीं रास जो, रोना ही जिसकी, नियति औ दस्तूर है। वह तो मजदूर है, वह तो मजदूर है। ~✍️ महेश