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बूढ़ा दरख़्त

Savita singh 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक दरख़्त 15845 0 Hindi :: हिंदी

उम्र दराज दरख्तों को, आंगन में लगे रहने दो,
फल दे ना दे , छांव बेहिसाब देगा ।
तुम बड़े हो जिस डाल के नीचे,
 तुम खेले हो जिस दरख़्त के पीछे ।
भूलों नहीं उसके रहमों -करम को ,
छेड़ो नहीं उसके जिस्मों-हरम को ।।
 तुम जड़ को छोड़कर पत्तों फलों में खो गए,
 तुम सच को छोड़कर झूठों के हो गए ,
सुनो........
जाओ बैठो एक बार फिर से ,
उस की छांव में ।
थक चुका है वह दरख़्त भी छाले लिए पांव में‌।।
रह लो कुछ वक्त उस ढूंढे दरख़्त के नीचे,
क्या पता....
कुछ कोपल ही निकल आए
 बिना तुम्हारे सींचे ।।

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