Ranjana sharma 31 Oct 2023 कहानियाँ दुःखद चुप्पी टूट गई#Google# 4033 0 Hindi :: हिंदी
आज बहुत दिनों बाद मेरी नजर मेरी डायरी पर गई ,तो देखी डायरी पर धूल जम गई थी और मैं जैसे रखकर गई थी आज भी उतने साल बाद वह उसी जगह पर रखी हुई है। देखकर मन किया उसे उठा लूं पर कुछ बात याद आ गई तो अपने हाथ पीछे कर ली और वहां से चली गई । तभी चाचा जी मेरे घर आए थें मुझे देख बोले - अरे ! छोटी तू कब आई,इतने साल बाद देखा तुझे ,कितनी छोटी थी अब तू पूरी शादी के लायक हो गई । उनकी यह बातें मेरी कानों को चुभने लगी, मैं बस उन्हें नमस्ते की और अपने कमरे में चली गई। मां मेरी इस रवैया को देख अंदर - ही - अंदर गुस्सा हो रही थी कि इतने साल बाद आकर भी अपने चाचा जी के साथ दो बोल भी नहीं बोली और चली गई पर वह जैसे - तैसे चाचा जी को संभाल ली। मेरे चाचा जी मेरे पापा के अपने सगे छोटे भाई थें इसलिए मैं उन्हें कुछ बोल नहीं पाती थी पर उनका व्यवहार मुझे रत्तीभर भी पसंद नहीं आती थी। मां आवाज लगाती अरे! छोटी आ कमरे से बाहर आ और कुछ खा - पी लें ,पर मैं बाहर नहीं जाना चाहती थी ,जब कुछ देर बाद मैं बाहर ना गई तो मां दुबारा आवाज देती , अरे! बाहर आ जा तेरे चाचा जी चले गए ,यह बात सुन मैं बाहर आकर खाना खाने लगी। सब मुझसे पूछते थें कि क्या बात है कि तू अपने चाचा जी से खींचा - खींचा रहती है पर मैं कुछ भी नहीं बता पाती थी। एक दिन मैंने देखा कि चाचा जी मेरी बहन को चॉकलेट दे रहे थें यह देख कुछ धुंधली तस्वीर मेरे आंखों के सामने आ गई और मैं कुछ देर के लिए एक जगह ही स्थिर रह गई ,फिर मुझे मेरी बहन के हंसने की आवाज़ आती है तब मैं देखती कि चाचा जी उसे गुदगुदी कर रहें थें। यह देख मैं गुस्से में जाकर अपनी बहन को अपने पास खींच लेती यह देख चाचा जी आग - बबूला हो जातें और कहते --"यह क्या कर रही हो ,अब मेरा गुस्सा यह सुनकर सातवें आसमां पर पहुंच जाती ,मैं अब चुप नहीं रहना चाहती थी क्योंकि अब ऐ बात मेरी छोटी बहन पर आन पड़ी थी।" मैं नहीं चाहती थी कि ---" उसका बचपन भी किसी अंधेरी रात में खो जाए और वह भी मेरी तरह खामोशी को अपनी साथी बना लें" इसलिए अपनी चुप्पी तोड़ने का निश्चय की और सभी घरवालों के सामने हिम्मत दिखाते हुए आज मैंने चाचा जी के असली चेहरे का दर्शन करा दिया और उसके मन में कितनी गंदगी है यह सब मैंने बता दिया । पर घरवालों को मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रही थी और उल्टा मुझे ही दोष ठहरा रहे थें ।तब मैं जाकर वह धूल जमी डायरी को लेकर आई और सबके सामने उसे खोलकर रख दिया ,उस डायरी में साफ - साफ मेरी आप बीती लिखी हुई थी,जो सबको दिखाई ,तब जाकर उनलोगों को अहसास हुआ कि मैं जो बोल रही हूं सच है। पर वे लोग समाज में बदनामी ना हो इसलिए घर की बात घर में रख देना चाहते थें पर में इस बार चुप नहीं रहना चाहती थी क्योंकि मेरी चुप्पी मेरी बहन और भी ना जाने कितने बेटियों पर भारी पड़ जाती ।मैं कुछ बोलती कि --" तभी चाची जी चीखकर बोलती , हां!,छोटी जो कह रही है बिल्कुल सच है।" क्योंकि मैंने भी उन्हें कई बार देख लिया था ,पर घरवालों और समाज क्या सोचेगें और हमारी क्या इज्जत रह जाएगी यही सोचकर मैं हमेशा चुप हो जाती पर आज छोटी की हिम्मत देख मैं भी न्याय और सच के साथ खड़ी रहूंगी अब इसके लिए मुझे कोई भी भुगतान क्यों ना भुगतना पड़ें। तभी घरवालों ने पुलिस को फोन लगाकर चाचा जी के नियत के बारे में बताकर उनको अरेस्ट करा देते ।इस तरह छोटी अपनी सूझ - बुझ और थोड़ी सी हिम्मत जुटाकर अपनी बहन को उस शैतान से बचा लेती और खुद को भी इंसाफ दिलाती और उस दर्द भरे घटना की सारी निशानियां के साथ - साथ अपनी बचपन की डायरी भी जला देती। धन्यवाद