Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

बचपन का बंदर

आकाश अगम 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य #बचपन का बन्दर #bachpan ka bandar #बचपन की याद #हिंदी कविता #आकाश अगम #Akash Agam #poetry #childhood #गुच्चमार #लँगड़ी #गुल्लीडंडा #gullidanda 41804 0 Hindi :: हिंदी

रात   को  अकेले  में  ये  विचार  करता   हूँ
क्या मैं आज बचपन के उन ही बंदरों सा हूँ।।

रोज़ खेलते, कूदते और साथ पिटते थे
दूध से बनी रबड़ी पे दो हाथ गिरते थे
बैंगनों की डंडी पर जान वार देते थे
डाँट पड़ रही मासूम बन निहार देते थे
आज पग बढ़ाते ही मैं धड़ाम गिरता हूँ
क्या मैं आज बचपन के उन ही बंदरों सा हूँ।।

आठ जब बजे खाया , भूँख दस बजे उभरी
चाय फिर बनायी और रोटियाँ मिली चुपरी
जागते थे जब सूरज सर पे चढ़ के आता था
हमको ऐसा लगता था , वो हमें जगाता था
आज मैं अँधेरे की इस घुटन में पिरता हूँ
क्या मैं आज बचपन के उन ही बंदरों सा हूँ।।

गुच्चमार , लँगड़ी औ खेले गुल्लीडंडा हम
एक दूसरे पर फिर आजमाते थे हम दम
बात बात पर होती थी लड़ाई लेकिन फिर
मार   एक  दूजे   को बात   जाने देते गिर
अब हुई लड़ाई तो मैं अकेला फिरता हूँ
क्या मैं आज बचपन के उन ही बंदरों सा हूँ।।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: