संदीप कुमार सिंह 30 Sep 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 10625 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) आदत से मजबूर जो, उस पर चढ़े न रंग। वो अपना ही चाल चल, करे काम को भंग।। आदत से मजबूर जो,सोचे कभी न खास। थोड़े में झूमे सदा,करके दृढ़ विश्वास।। आदत से मजबूर जो,करता नहीं विकास। जब वो है मजबूर तो,उसका क्या है आस।। आदत से मजबूर जो,रहता एक समान। लेकिन यह तो है बुरा,सदा करे नुकसान।। आदत से मजबूर जो,समझ उसे बेकार। वो तो उलझा ही रहे,करे नहीं प्रतिकार।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....