Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग #रामबृक्ष कविता#अम्बेडकरनगर पोइट्री#हास्य कविता#दावत कविता रामबृक्ष 50958 0 Hindi :: हिंदी
मैं दावत खाने बैठा था कौन अपना कौन पराया मैं खुद अंजान कौन बिन बुलाए मेहमान किन्तु प्रेम का संगत अनूठा था, देख देख कर एक दूसरे को पूछ पूछ कर एक दूसरे से खुद खाना औरों को खिलाना खट्टे प्रेम का स्वाद बहुत मीठा था, सुदामा का तंदुल शेबरी की बेर प्रेम से भेंट हरि को दावत यह सच्चा दावत दावत था भले ही बेर जूठा था, क्या होली क्या दीवाली मानो एक साथ दोनों का अपना निराला समा खाने पीने संग लगा त्योहारों का संगम इकट्ठा था, रचनाकार- रामवृक्ष,अम्बेडकरनगर
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...