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दिखाई पड़ते हो दिन रैन-बना जो जीवन का फूल हुई ना उससे कोई भूल

Sudha Chaudhary 18 Jul 2023 कविताएँ अन्य 6925 0 Hindi :: हिंदी

बना जो जीवन का फूल
हुई ना उससे कोई भूल
कहां मैं तुमने थी नित प्रीत
जहां से तुम बनकर शीत
दिए हो खोल हमारे दृग
उठे अब कौन यहां से नीति।

तुम्हारे कंपन का उर भास
सहारा बन जाए अब रास
चले संसार से आगे हम
जहां मिल जाए तुम्हारा संग।

हठी है मेरे आतुर नैन
विकल है तुमसे कह कर बैन
बिछड़ जाएं ना हम इस बार
विफल हो यह अंतिम प्रयास

सत्य से भागे हैं कौन
निकलकर पहुंचे हैं मौन
कल्पना के उद्दीप्त करो से
दिखाई पड़ते हो दिन रैन।

सुधा चौधरी
बस्ती

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