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सुधा मूर्ति की प्रेरणा -परोपकारी सहायता

virendra kumar dewangan 17 Jul 2023 आलेख समाजिक Social 5619 0 Hindi :: हिंदी

सुधा मूर्ति इंफोसिस फाउंडेशन के सह-संस्थापक नारायणमूर्ति की धर्मपत्नी हैं। वह वर्तमान में इसकी अध्यक्ष हैं। सुधा मूर्ति टेल्को की पहली महिला अभियंता तब बनी, जब महिलाओं को नौकरी कराना तो दूर, पढ़ाना-लिखाना भी अच्छा नहीं समझा जाता था। उन्होंने अपनी आपबीती 29 नवंबर को सोनी टीवी पर प्रसारित ‘कौन बनेगा करोड़पति-सीजन-11’ के फिनाले एपिसोड करमवीर में साझा किया है।

महिला सशक्तीकरण की मिसाल सुधा मूर्ति का जन्म 1950 में हुआ। वह पढ़ाई से लेकर नौकरी तक मुश्किल सफर पार की है। उनका कहना है,‘‘उनके पिता-आरएच कुलकर्णी सरकारी चिकित्सक थे और माता-विमला कुलकर्णी शादी से पहले तक स्कूल अध्यापिका। साल 1968 में उसने इंजीनियरिंग पढ़ने का मन बनाया, तो घर में कोहराम मच गया। 

दादी बोली,‘‘यदि वह इंजीनियरिंग की, तो बिरादरी में लड़का कहां से मिलेगा? लड़की का इंजीनियरिंग करना कल्पना से परे है।’’

अनुभवी दादी का कथन हकीकतभरा था। पिता चूंकि आधुनिक ख्यालों के थे, इसलिए वे दादी को समझा-बुझाकर एक कालेज में उनका एडमिशन करवा दिये। सुधा मूर्ति जिस इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला ली थी, उसमें 600 विद्यार्थियों में वह अकेली युवती थी। बाकी 599 नवयुवक थे।

वह आगे बताती है,‘‘मेरे मार्क्स को देखकर मुझे तीन शर्तों पर एडमिशन मिला था। एक, मुझे पूरे इंजीनियरिंग कोर्स के दरमियान सिर्फ साड़ी पहननी है। दूसरा, कालेज कैंटीन नहीं जाना है। तीसरा, कालेज में किसी लड़के से बात नहीं करनी है।’’ 

उन्होंने आगे कहा कि चूंकि मुझमें पढ़ाई का जुनून सवार था, इसलिए मैंने इन शर्तों का कढ़ाई से पालन किया था।

उन्हें एमटेक अंतिम वर्ष के बाद 1974 में अमेरिका जाने के लिए स्कालरशिप मिला। पर वह अमेरिका नहीं गईं। इसका कारण उन्होंने बताया कि तभी टेल्को कंपनी ने एक नोटिस जारी कर युवा इंजीनियरों की आवश्यकता का विज्ञापन प्रकाशित किया था। वेतन 1500 रुपया महीना। किंतु, अफसोस यह कि इस विज्ञापन में महिला उम्मीदवारों के द्वारा आवेदन न करने का टीप लिखा हुआ था।

टीप उसे झकझोर कर रख दिया। वह तुरंत पोस्टकार्ड उठाई और रोष में पत्र लिख डाली। तभी उसे ख्याल आया कि इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस में फाउंडर्स डे पर जेआरडी टाटा आते थे। वही टेल्को के मालिक भी हैं।
 
उन्हांेने पत्र में लिखा,‘‘डियर जेआरडी टाटा, टाटा परिवार औद्योगिक क्षेत्र में अग्रणी है। आपने कई होटलों और टिस्को कंपनी का निर्माण किया है। इसके बावजूद, आपकी सोच बहुत पिछड़ी हुई है। हमारे समाज में 50 फीसदी महिलाएं हैं। यदि इसी तरह सोच जारी रही, तो हम कभी तरक्की नहीं कर पाएंगे।’’

यह पत्र उन्होंने जेआरडी टाटा, टेल्को, बांबे लिखकर पोस्ट कर दिया। हालांकि पता ठीक नहीं था, लेकिन जेआरडी टाटा की प्रसिद्धि के कारण पत्र उन्हें मिल गया। लगता है उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ।
 
उन्होंने सुधा को पत्र द्वारा बुला भेजा, ताकि सही उम्मीदवारों का चयन हो सके। उन्हें 10 सीनियर्स इंजीनियरों के पैनल के सामने उपस्थित किया गया। वह डरी-सहमी सी हर प्रश्न का माकूल जवाब दी। अंततः उसका चयन हो गया।

चयन के बाद अमेरिका जाने के नाम पर उसका मन बदलने लगा, तो उनके पिता ने समझाया,‘‘अगर वह सचमुच मानती है कि इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, तो उसे ये नौकरी कर साबित करना चाहिए। तुम ऐसा नहीं करोगी, तो यह महिलाओं के लिए गलत उदाहरण बन जाएगा। अब, तुम्हारा कर्तव्य है कि तुम न केवल यह नौकरी करो, अपितु बेहतर प्रदर्शन कर महिलाओं की श्रेष्ठता साबित करो।’’

इस तरह सुधा मूर्ति नौकरी स्वीकार कर टेल्को की पहली महिला इंजीनियर बन गई। इससे यही सिद्ध होता है कि जो लोग साहस दिखाकर धारा के विपरीत बढ़ते हैं, वे ही समाज व व्यवस्था में बदलाव लाने में सक्षम होते हैं। शो के एंकर सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने उनका आटोग्राफ लिया और चरणस्पर्श किया।

टेल्को में उनकी भेंट नारायण मूर्ति से हुई। वे विवाह-बंधन में बंध गए। जब नारायण मूर्ति ने पुणे में ‘इंफोसिस’ आरंभ करने का मन बनाया, तब सुधा मूर्ति को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। 

इस पर जेआरडी ने कहा,‘‘जब आपकी कंपनी खूब कमाएगी और आपके पास खूब पैसा होगा, तो आप याद रखना कि ये समाज का पैसा है, आप तो सिर्फ ट्रस्टी हैं। यह पैसा आप समाज के भले के लिए लगाना।’’ 

इसी से प्रेरित होकर उन्होंने ‘इंफोसिस फाउंडेशन रिलीफ वर्क’ चलाया, जो समाजसेवा का उदाहरण बन गया।

जब नारायण मूर्ति ने इंफोसिस आरंभ किया, तब सुधा मूर्ति ने उन्हें 10 हजार रुपए की मदद करते हुए कहा था,‘‘सर्कस में टेªपीज आर्टिस्ट एक झूले से दूसरे झूले को पकड़ते हैं, नीचे उनकी सुरक्षा के लिए एक जाल बिछा होता है। मुझे यकीन है आप हवा में झूला पकड़ सकते हो, लेकिन मैं आपके लिए हमेशा जाल समान मौजूद रहूंगी।’’

यह प्रेरणा उन्हें अपनी मां विमला कुुलकर्णी से मिली थी कि एक अच्छी पत्नी को हमेशा अपने पास इमेरजेंसी फंड जमा कर रखना चाहिए, जो आड़े वक्त पर परिवार के काम आए।

सुधा ने अपने अनुभवों को साझा करने के लिए कई किताबें भी लिखी हैं। उनकी किताबें बेस्टसेलर रही हैं। 15 लाख से ज्यादा प्रतियां बिकी हैं। 2006 में उन्हें साहित्य का आरके नारायणन अवार्ड मिला है।
 
उन्होंने कन्नड़ व इंग्लिश में कई कथात्मक उपन्यास लिखा है, जिसमें-से उनकी लधुकथा ‘द डे आई स्टॉप्ड ड्रिकिंग मिल्क’’ काफी चर्चित मानी जाती है। इस कथा में उनने अपनी आपबीती बयां की है कि किसी की थोड़ी सी सहायता किसी का जीवन कैसे बदल सकती है? इंसान ऐनवक्त किए गए परोपकारी सहायता को ताजिंदगी नहीं भूला करता।
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