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राही-ख्वाब मेरी मंजिल के मुझे ना दिखा

Raj Ashok 17 Aug 2023 कविताएँ समाजिक राही 7012 0 Hindi :: हिंदी

ख्वाब ,मेरी 
मंजिल के ,मुझे ना दिखा। 
मैं हुँ  , ,राही 
निकला हुँ, मे एक 
अनजान  , सफर पर
जानता हुँ, 
करते है काँटे 
हिफाजत अक्सर फुलों की
कलीयाँ, फिर क्यो 
ये अहसास दिला ती है। 
भँवरों कि गुनगुनाहट
उन्हें प्रेम सिखाती है। 
है। लक्ष्य मुझे भी भेदना ।
बन के अर्जुन ।
अ....जिन्दगी 
तु रण- बैली तो बजा। 
मेरा संकल्प ही, मेरा
सारथी है। 
विजय दिवस पर
होगा,
तेरा भी आतिथ्य
सम्मानित होगा। 
हर एक मेरे पथ.का राही

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