संदीप कुमार सिंह 19 Apr 2024 कविताएँ प्यार-महोब्बत मेरी यह कविता पाठक लोगों को बहुत ही पसंद आएगी. 62 0 Hindi :: हिंदी
बैठी दहलीज़ पर शून्य में निहारती। प्रश्न अनेकों मन में कौंधती, खुद से ही बातें करती। निरुत्तर हो रह जाती, बीते दिनों को याद करती। खुद को ही समझाती, कहाॅं मुक़म्मल होती ये ज़िंदगी? बचपन से अब तक न जाने, कितने सपने टूटे अपने छूटे। वर्षों बसी जिस गली में, उस गली की मिट्टी छुटी। संग रिश्तें -नाते -सहेलियाॅं छूटी, तो आज आ़ॅंखों में नमी क्यों है? जो भूल गए हमको, उसकी कमी क्यों है? आज फिर इन आ़ॅंखों को, उस पल का इंतज़ार क्यों है? जिसे बरसों पहले मजबूरियों का नाम दे दफ़ना आए, आज फिर आ़ॅंखों में नमी क्यों है? पूछता ये दिल बार-बार हमसे, कुर्बानियों की बलि पर, हम ही चढ़ते क्यों हैं? (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह ✍️
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....