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बादाम वाला-बादाम वाला एक खौफनाक किस्सा

भूपेंद्र सिंह 03 Jan 2024 कहानियाँ अन्य बादाम वाला एक खौफनाक किस्सा 7244 0 Hindi :: हिंदी

कहानी

                      बादाम वाला

वह पूरी तरह से एक सुनसान , उजड़ा हुआ , बजंर और बेजान सा गांव था, नाम था खुशालपुर, पर हर नाम के पीछे विरोधावास का छिपा होना तो सावाविक सी बात है। यह गांव झाड़ झखन्डों से भरपूर चारों और से काले और भयानक जंगलों से घिरा हुआ एक सुनसान गांव था। रात में गांव में पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहता था। हां मगर कभी कभी सियारों और कुतों का रूदन स्वर रात की शांति में कुछ बाधा उत्पन्न कर देता था। इन सब सांसारिक चिंताओं से दूर एक चौकीदार और एक वैध ( चिकित्सक) गांव के एक टूटे फूटे औषधालय में मजे से रह रहे थे। गांव में ज्यादा लोग नहीं रहते थे। इसलिए मरीज भी कम ही होते थे जो की उस औषधालय में दवाई लेने के लिए आते थे। भले ही वैद्य लालचंद पांडुरंग हेगड़े  वहां आराम से रहता था मगर फिर भी वह अपनी इस नौकरी से खुश नहीं था क्योंकि यह पूरी तरह से सुनसान गांव था, जहां पर कोई भी रौनक नहीं थी। सब लोग अपने आप में ही व्यस्त रहते थे , किसी को किसी को कोई भी परवाह नहीं थी। वैध लालचंद पांडुरंग हेगड़े को अभी अभी वैध की नौकरी मिली थी। उसकी उम्र भी ज्यादा नहीं थी, महज 20- 22 साल का युवा ही था। वो अपना तबादला चाहता था। उसके परिवार में सिर्फ उसकी एक मां थी जिसका नाम था - सावित्री देवी। उसका घर उस गांव से लगभग 20 कोस दूर था, उसे रोज पैदल चलकर अपने घर जाना पढ़ता था और रोज पैदल चलकर ही इस औषधालय में आना पढ़ता था क्योंकि उसके पास तो एक घोड़ा खरीदने के पैसे भी नहीं थे। उसे ये नौकरी मिले अभी महज बीस दिन ही हुए थे । वो सोच रहा था की अपने पहले वेतन से वो एक घोड़ा खरीदेगा ताकि उसे आने जाने में कोई परेशानी न हो। इस औषधालय में वो अकेला ही वैध था। हां मगर उसके साथ एक चौकीदार भी रहता था, जो की उसी गांव का था। वो बिलकुल ही बूढ़ा व्यक्ति था। जीवन भर के संघर्ष को रेखाएं उसके चेहरे पर नज़र आती रहती थी। उसका शरीर भी अब बिलकुल जवाब दे चुका था। लालचंद सुबह जल्दी ही इस गांव में आ जाता और शाम होने से पहले ही अपने घर वापिस लौट जाता। उसका सारा दिन इसी प्रकार बीत जाता। लेकिन एक बार गांव में एक भयंकर बीमारी फैल गई। एक दिन तो मरीजों को तादाद इतनी बढ़ गई को दवाइयां देते देते लालचंद को शाम हो गई । 















लालचंद उस औषधालय से बाहर निकला। अब रात होने को आ चुकी थी। लालचंद ने बाहर आकर देखा। चारों तरफ एक जानलेवा सन्नाटा छाया हुआ था। औषधालय के बाहर फटे पुराने कपड़े पहनकर वो चौकीदार रामलाल लगातार उसी की और घूरे जा रहा था। 









लालचंद कुछ तेज कदमों से चलते हुए उस बूढ़े चौकीदार के पास गया और उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। रात के इस जानलेवा अंधेरे में किसी का भी चेहरा साफ नज़र नहीं आ रहा था। वे दोनो आपस में कुछ बातें करने लगे।









वैध लालचंद - " दादा, आज तो मरीजों की बढ़ी भीड़ थी। और एक ये बीमारी हर दिन बढ़ती ही चली जा रही , कम होने का नाम ही नही लेती। लगता है कल भी मरीजों की इसी तरह भीड़ आ जुटेगी। मैं कोशिश करूंगा की सुबह जल्दी आ सकूं।









खैर छोड़ो मैं अभी चलता हूं।"









लालचंद की बात सुनकर वो चौकीदार बुरी तरह डर गया और थर थर कांपने लगा। उस बूढ़े चौकीदार ने आंखे फाड़कर लालचंद की और देखा और फिर कंपकंपाती सी आवाज में बोला।









चौकीदार - " बेटा अंधेरा बहुत बढ़ चुका है। वैसे भी आज पूनम के चांद की रात है। इस वक्त घर जाना मुनासिब नहीं है बेटा। तुम आज की रात मेरे पास ही रुक जाओ बेटा। और वैसे भी तुम्हे मालूम है ना की तुम्हे उन भूतिया खंडहरों के बीच में से गुजरना पड़ेगा।"









चौकीदार की ये बात सुन कर लालचंद जोर जोर से हंसने लगा और बोला ।









लालचंद - " दादा मैं एक वैध हूं । आप मुझे इन टोटकों से मत डराइए और वैसे भी मैं इन टोटकों से डरने वाला नहीं। और रही बात जंगल वाले गांव की तो वहां पर घर है , लोग नहीं क्योंकि वो घर अब खंडहर हो चुके हैं। मुझे किसी से डर नहीं लगता। "









उस चौकीदार ने शक भरी निगाहों से लालचंद की और देखा और फिर बोल पड़ा।









चौकीदार - " सोच लो बेटा अभी भी तुम्हारे पास वक्त है , मैं तो तुम्हारे भले के लिए ही कह रहा हूं । कहते है की उस गांव में एक अघोरी रहता था जो की बच्चो की बलि दिया करता था। एक दिन गांव वालों ने उस अघोरी को पकड़कर मौत की नींद सुला दिया। कहते है की उसके बाद से हि सारा गांव वीरान हो गया। घर खंडहर बनकर रह गए। उस अघोरी की आत्मा आज भी वहां पर भटकती रहती है।"









ये सुनकर लालचंद फिर से हंस पड़ा और बोला।









लालचंद - " दादा मैं तो रोज ही वहां से गुजरता हूं । मुझे न तो कोई अघोरी मिला और न ही कोई आत्मा। आप कहानी अच्छी जोड़ लेते है दादा , मगर अफसोस की आपको ये कहानी किसी डरपोक व्यक्ति को सुनानी चाहिए थी मुझे नहीं ।"









ये सुनकर वो चौकीदार लालचंद की और कुछ कुछ गुस्से से देखते हुए बोला।









चौकीदार - " बेटा तुम रोज शाम होने से पहले ही निकल जाते थे, दिन की रोशनी में तुम्हारा सामना उस अघोरी से नहीं हुआ , लेकिन अब रात हो चुकी है । मेरी बात मान जाओ बेटा, आज यहीं पर रुक जाओ । नहीं तो कल जहां पर आने के लायक भी नहीं बचोगे।"









लालचंद ये सुनकर आग बबूला सा हो गया और उस चौकीदार की और गुस्से से देखते हुए बोला।









लालचंद - " देखो दादा, मेरे पास आपकी झूठी कहानियां सुनने के लिए फुरसत नहीं है और वैसे भी मेरी मां घर पर मेरा इंतजार कर रही होगी।"









चौकीदार ने उसे बहुत समझाया लेकिन उसने उसकी एक न सुनी और वहां से तेजी से निकल पड़ा और देखते ही देखते आंखो से ओझल हो गया। 









उस बूढ़े चौकीदार के तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की अब वो क्या करे। उसने बस अपने दोनों हाथ जोड़े और आसमान की और देखते हुए बोला " भगवान इस लड़के की रक्षा करना।"

क्या लालचंद की भगवान रक्षा करेंगे या फिर वो मारा जायेगा । 

चलते चलते वैध लालचंद पांडुरंग हेगड़े उस खंडहर रूपी गांव के पास पहुंच गया और दबे पांव धीरे धीरे आगे कदम बढ़ाने लगा।

उस रात काफी अंधेरा छाया हुआ था। एक जानलेवा सन्नाटा चारों और पसरा हुआ था। जैसे ही लालचंद उस वीरान खंडहर रूपी गांव के पास पहुंचा तो उसे हर चीज कुछ अजीब सी नजर आने लगी। उसे अनायास ही लगने लगा की वो पहली बार जहां से गुजर रहा है क्योंकि उसे रास्ते की हर चीज अपरिचित सी महसूस हो रही थी चाहे वह पेड़ हो , मिट्टी हो या इस वीरान खंडहर रूपी गांव के टूटे फूटे घर हो। 



वो अपने आप से ही धीरे से बोल पड़ा " दिन में ये खंडहर कुछ अलग नज़र आते हैं और रात में कुछ और।"



हालांकि लालचंद भूत प्रेतों में विश्वास तो नहीं करता था और न ही उसे डर लगता था लेकिन उस रात का खौफनाक वातावरण ही कुछ इस तरह नज़र आ रहा था की उस रात अगर और कोई भी लालचंद की जगह होता तो वो भी लालचंद की तरह डर ही जाता। लालचंद ने मारे डर के अपनी गति धीमी कर दी। वो अपनी नज़र तेजी से चारों दिशाओं में दौड़ाने लगा। अचानक से उसे अपने सामने एक काली सी आकृति चलती हुई नज़र आई। ये देखकर वो बुरी तरह डर गया और थर थर कांपने लगा और ठंड की उस रात में भी पसीना पसीना होकर रह गया। लेकिन अगले ही पल उसने कुछ शांति महसूस की क्योंकि वह एक बादाम वाला था जो की अपनी रेहड़ी लिए धीरे धीरे चले जा रहा था। उसे गले में काले मोतियों की एक बड़ी सी माला लटक रही थी जो उसके चलने पर जोर जोर से आवाज करती थी और उस रात के भयानक सन्नाटे को चीर डालती थी। लालचंद भागकर उसके पास चला गया और उसी के साथ आगे बढ़ने लगा। वो मूंगफली वाला कुछ भयंकर सा नज़र आ रहा था। उसका बड़ा सा काले रंग का चेहरा था, बड़ी बड़ी काले रंग की ढाड़ी ने उसके पूरे चेहरे को घेर रखा था। उसकी बड़ी बड़ी काले रंग की आंखे थी। वो देखने में कोई खतरनाक तांत्रिक या फिर कोई अघोरी सा नज़र आ रहा था। 



वो बादाम वाला धीरे से बहुत ही डरावनी , मोटी और भयंकर आवाज में लालचंद की और देखते हुए बोला " क्या खाओगे साहब, मूंगफली , बादाम, काजू या फिर कुछ और।"



उसकी भयंकर सी आवाज सुन लालचंद थोड़ा सा डर गया और कुछ देर चुप रहने के बाद कंपकंपाती सी आवाज में बोला "कुछ नहीं। आपको इतनी रात में अकेले डर नहीं लगता।"



बादाम वाला - " अरे साहब डर कैसा, ये तो मेरा रोज का धंधा है । क्यों साहब आपको डर लग रहा है क्या?"



लालचंद - " नहीं तो। लेकिन कहते हैं ना की इस गांव में एक अघोरी रहता था जो गांव के बच्चों की बलि देता था।"



बादाम वाला- " अरे साहब ये सब अपवाहें हैं, सिर्फ लोगों को डराने के टोटके है ये सब। कहते तो ये भी है की एक दिन इस अघोरी को गांव वालों ने पकड़ कर जला दिया था। वो तड़प तड़प कर मर गया।"



ये सुनकर लालचंद को कुछ अफसोस हुआ और वो एक और नज़र दौड़ाते हुए कुछ सोच में डूब गया।



तभी वो बादाम वाला बहुत ही भयानक और बहुत जोर से बोला " अरे सुन रहा है ना सावित्री देवी के छोरे।"



ये सुनते ही लालचंद के पैरों तले जमीन ही खिसक गई। उसके पसीने निकल गए। उसे जमीन आसमान एक होते हुए नज़र आने लगा।



लालचंद ने डरते हुए उस बादाम वाले की और देखा और कंपकंपाती आवाज में बोला "तुम मेरी मां का नाम कैसे जानते हो?"।



बादाम वाला जोर जोर से हंसने लगा और बोला "अरे वो भी तो इसी गांव में रहती थी। उस अघोरी को जलते वक्त वो भी उन गांव वालो के साथ खड़ी मजे लूट रही थी।



लालचंद के तो समझ में नहीं आ रहा था की ये सपना है या फिर सच। उसने उस बादाम वाले के नाखून देखे तो वह पूरी तरह से डर गया। उस बादाम वाले के बड़े बड़े काले रंग के नाखून थे जो की पूरी तरह से खून से लाल थे। ये देखकर लालचंद वहां से नौ दो ग्यारह हो गया और तब तक नहीं रुका जब तक की अपने घर में नहीं घुस गया। वो तेजी से अपने घर में घुसा और घर का दरवाजा बंद कर दिया। वो अपनी मां को सारी आपबीती सुनाने लगा।



"मां आप मेरा यकीन करो उसके नाखून बहुत ही भयंकर और खून से लथपथ थे।" लालचंद ने हांफते हुए अपनी मां से कहा।



ये सुन कर उसकी मां जोर जोर से हंसने लगी और उस बादाम वाले के जैसे ही भयंकर आवाज में अपने बड़े बड़े खून से लथपथ नाखून आगे करते हुए बोली " कहीं ऐसे नाखून तो नहीं थे।"



लालचंद को धरती आसमान एक होते हुए नज़र आने लगा और वो बहोश होकर वही जमीन पर औंधे मुंह जा गिरा।



अगले दिन इस खंडहर रूपी गांव के पास बहुत सी भीड़ इकट्ठा थी। सामने एक कटी फटी और खून से लथपथ लाश पड़ी थी। चौकीदार ने अपने कंपकंपाते हुए हाथो दे लाश को सीधा किया और उसकी चीख निकल गई क्योंकि वो लाश लालचंद की ही थी। बाद में पता चला कि लालचंद बीती रात अपने घर पहुंचा ही नहीं था।।



✍️✍️भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।

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