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कर रही ध्वस्त

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद This poem is bese on Changing activity of person and awerness human love of all the person if any one person prepares good and changes his heart to read my this poem than my poem preparing work would be success. 15593 0 Hindi :: हिंदी

कर रही ध्वस्त मानवता को,
मानव वंदीत ये कर्मियता!
है वयस्त प्रभाकर उदित बने, 
अंधियारों की है आत्मियता!! 
                   थे बुद्ध जहां बुद्धी मे लीन, 
                   प्रबुद्धता का वंदन विश्व करे! 
                   दे ज्ञान विश्व को अमर दान, 
                  मानवता का अभीनंदन विश्व करे!! 
है र्दद, वेदनाओं से भरी, 
ये जीव जगत का विश्व लोक! 
बुद्धि भी लीन नीज वंदन मे, 
है कर्म कर रहा महा शोक!! 
                        उत्कंठाओं की धुनी में, 
                        मेहनत को ढलते देखा है! 
                        जीस धरा मे बुद्धी बुद्ध हुए,
                        बुद्धी को लुघड़ते देखा है!! 
अब आशाओं का त्रिप्तलोक ,
गर मानवता का गुहार करें! 
विवेक, बुद्ध कि करूण धरा, 
हर निराशाओं को पार करे!! 
                    इस मन की निराशा उथल, पुथल,
                    भारत को पीछे छोड़ रही! 
                    कर रहे ऋणी ऋण खाने वाले, 
                    आजादी दील को तोड़ रही!! 
हम इतिहास की खातीर जीते हैं, 
अधरों मे बसाकर मान हास! 
मानवता को वंदीत हृदय करे, 
हर दील मे जगाना इक विश्वास!! 
                        जब भारत के इतीहासो मे, 
                        र्दद धरा की गुंजेगी! 
                       मानवता का होगा अभीनंदन, 
                       प्राकृती धरा को पूजेगी!! 
है कर्म मनूज का महा प्रबल, 
झूठा है स्वार्थ झूठी निष्ठा! 
क.. क.. क.. कर रही ध्वस्त मानवता को, 
मानव वंदीत ये कर्मियता!! 

   कवी     :- अमित कुमार प्रशाद
   Poet   :- Amit Kumar Prasad
  

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