अपनों के लिए ही अपनों से नाता तोड़ आया,
वो कच्चे गलियारे पीपल की छाँव छोड़ आया।
आकर शहर पता चला मुझे,
मैं चंद पैसों के लिए अपना गाँव छोड़ आया।।
~बालकवि जय जितेन्द्र
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)
अपनों के लिए ही अपनों से नाता तोड़ आया,
वो कच्चे गलियारे पीपल की छाँव छोड़ आया।
आकर शहर पता चला मुझे,
मैं चंद पैसों के लिए अपना गाँव छोड़ आया।।
~बालकवि जय जितेन्द्र
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)