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दिल्लगी....

Gopal krishna shukla 30 Mar 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत #इश़्क शायरी 33138 0 Hindi :: हिंदी

 
सरफिरा व्यक्ति हूँ मैं, रोज़ बिछड़ता हूँ... 2
इनसे मिलता हूँ, कभी मैं उनसे मिलता हूँ, 
लौट आता हूँ घर मैं सोने को ही बस, 
हेतु सोने को मैं अपना नित घर बदलता हूँ.. 
सरफिरा व्यक्ति हूँ मैं रोज़ बिछड़ता हूँ ll2

है ना मेरी कोई पहली, ना किसी मैं भी पहला.... 
हूँ हक़ीक़त गुनगुनता ll2
राह की राही ठहर जाती, मैं हूँ उसके पास जाता ll
ना वो मेरी, ना मैं उसका....... 
है उसका ही नशा तो जो मैं उसके पास जाता l

वो ना देखे अब मुझे, मैं भी देखूं अन्य को, 
अन्य मुझे अब मिल गया है मन भरूँ मैं बात कर लूँ l
इश्क अश्क की दो ही बातें तू  कहे या मैं कहूँ, 
सरफिरा व्यक्ति हूँ मैं, रोज़ बिछड़ता हूँ... ll2
                                गोपाल कृष्णा शुक्ला
                         छात्र -BHU  M.Sc (math) 

                    

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