Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

बेईमानी का फल

भूपेंद्र सिंह 03 Jan 2024 कहानियाँ अन्य एक बेईमान दोस्त की कहानी 7052 0 Hindi :: हिंदी

कहानी
             बेईमानी का फल

उदयपुरी नामक स्थान के वीरान खंडहरो में पिछले तीन वर्ष से भी अधिक समय से खुदाई का कार्य चल रहा है। कुछ खास हाथ नहीं लग रहा है। कभी कोई घड़ा हाथ लगता तो कभी चाक, पक्की ईंटे और अनेक मृदभांड। लेकिन इन सभी वस्तुओं का मिलना मनोहर और उसके जिगरी दिल्लगी यार जबाली के लिए एक आम बात थी। उन दोनों को तो कोई अविसवस्नीय वस्तु का अपने हाथ लग जाने का इंतजार था। कहते हैं कि दो दोस्त दो भाइयों से भी बढ़कर होते हैं, ये बात लगता था की किसी खुराफाती ने मनोहर और जबाली के लिए ही कही है। वे दोनों बचपन में एक ही गांव में रहे, साथ खेले, बड़े हुए और फिर दोनों एक साथ इस पुरातत्व विभाग के पद पर आ नवाजे। दोनों को ही पुरात्व वस्तुओं का बड़ा शौंक था। उन दोनों का ही सपना था की एक दिन उनका नाम भी मार्सल महोदय की तरह इतिहास के सवर्णिम पृष्ठों पर लिखा जाए, बस इसी के लिए उदयपुरी के इन वीरान खंडहरों में ये प्रयास जारी था। जब स्थानीय लोगों को इस स्थान से कुछ पक्की ईंटे मिली तो ये खबर आग को तरह लपटें लिए हुए जबाली के कानों तक पहुंची और फिर जहां पर खुदाई का कार्य प्रारंभ हो गया। उन दोनों को जहां पर डेरा डाले हुए तीन साल से भी अधिक अरसे का समय हो गया था मगर अब तक निराशा ही हाथ लग रही थी।
दिन के तीसरे पहर का समय होने को आ गया है। मनोहर हाथों पर दस्ताने चढ़ा कुछ पत्थरों को चाकू की मदद से साफ किए जा रहा है तो दूसरी ओर जबाली कुछ ईंटो को तोड़े जा रहा है मानो उनके बीच में किसी ने सोना छुपाया हो और वो एक लोभी की तरह उसे ढूंढ रहा है।
तभी एक और से एक मजदूर को आवाज आई " सर, जल्दी आइए जहां पर कुछ है।"
उन दोनों ने उस और देखा और तेजी से उस मजदूर के पास भागकर गए। कुछ ईंटो को लंबी कतार में एक के ऊपर एक करके सजाया गया था।
मनोहर - " लगता है ये कोई दीवार है।"
जबाली - " हां लगता तो ऐसा ही है।"
मनोहर - " एक काम करो सभी मजदूरों को बुलाओ और इस दीवार के पास खुदाई करो। क्या पता कुछ ऐसा हाथ लग जाए जो आज तक किसी के भी हाथ न लगा हो?"
कई दिनों तक वहां पर खुदाई का कार्य चला। पहले तो सिर्फ ईंटे मिली और फिर एक कब्रिस्तान , फिर एक मकान। मगर वे दोनों संतुष्ट नहीं थे , वे तो कुछ ऐसा पाने की फिराक में थे जो और कहीं से भी न मिला हो और न मिले?
आज भी खुदाई जारी थी। पहले तो एक बड़ी सी दीवार मिली। फिर धीरे धीरे पूरा मकान ही मिल गया।
मनोहर - " जबाली क्या मकान है ये। जरूर किसी समय में ये किसी रईस का अड़ा हुआ करता होगा मगर वक्त ने ऐसी नजरें फेरी की ये सिर्फ एक वीरान खंडहर बन कर रह गया।"
जबाली - " मकान के अंदर घुसकर देखते हैं अगर कुछ हाथ लगता है तो?"
वे दोनों मकान के अंदर घुस कर छानबीन करने लगे। मगर हमेशा की तरह ईंटे, रंगे हुए पत्थर ही मिले।
जबाली ने एक और इशारा किया और बोला " उस मिट्टी के ढेर के नीचे शायद कुछ है?"
उन दोनों ने फावड़ा ले उस मिट्टी के ढेर को हटाया तो एक संदूक हाथ लगा। उस संदूक को देख उन दोनो के मन में एक तीव्र इच्छा जागृत हुई। जबाली ने उस संदूक को खोला । अंदर एक ताम्रपत्र था जिस पर संस्कृत भाषा में लिखा था " उत्माद्रि के काले जंगलों की काली गुहा के काले तहखाने में असीमित धन मिल सकता है अगर हूण राजा मिहिरकूल वहां तक न पहुंचा हो तो।"
मनोहर - " क्या बात है असीमित धन यानी अब हमारी गरीबी खत्म।"
जबाली - " अगर धन न मिला तो?"
मनोहर - " अगर इसमें लिखा है तो जरूर मिलेगा।"
जबाली - " ठीक है तो मैं कल सुबह काले तहखाने की खोज में निकलूंगा और तुम यहीं पर रहकर खुदाई कार्य जारी रखना क्या पता कुछ और हाथ लग जाए।"
मनोहर मन में सोचने लगा " तो ये बात है। धन देख इसकी नियत बिगड़ गई। सारा धन अकेला ही हजम करना चाहता है। मैं तो इसे अपना दोस्त समझता था और ये मेरे साथ ही गद्दारी कर रहा है। रुक बच्चू तुझे तो मैं बताऊंगा।"
मनोहर - " अरे नहीं जबाली! हम दोनों साथ चलेंगे और इस धन पर हाथ फेरेंगे।"
जबाली ने भी धीरे से हां में सिर हिला दिया।
मनोहर ने अपने चेहरे पर नकली मुस्कुराहट दिखाई क्योंकि ये बात उसे अंदर से खाए जा रही थी की उस धन में से आधा हिस्सा जबाली ले लेगा जबकि वो सारा धन अकेले ही प्राप्त करना चाहता था। वो नहीं चाहता था की जबाली इस धन में हिस्सेदार बने। उन दोनों ने अगली सुबह उत्माद्रि की और निकल पड़ने का निर्णय लिया।
शाम का वक्त है। मनोहर कुछ सोचते हुए अपने घर में टहल रहा है। मनोहर अपने मन में सोच रहा था " उस जबाली की नियत में तो खोट निकली। कह रहा था की अकेला ही धन खोजने के लिए जाऊंगा, खुद को बहुत शातिर समझता है। उस जबाली को तो ठिकाने लगाना ही पड़ेगा। पर क्या किया जाए? अगर वो असीमित धन मुझे मिल गया तो तमाम उम्र बेफिक्री में कटेगी।"
अचानक से मनोहर अपने आप से ही बुधबुधा उठा " हत्या।" कुछ निश्चित , अनिश्चित सी योजनाएं बनाता हुआ वह सोने चला गया।
अगले दिन पीठ पर बैग टांग, पानी की बोतल डाल, अच्छे कपड़े पहन कर दोनों उत्माद्री के जंगलों की और निकल पड़े। जंगल में चलते चलते शाम होने को आ गई। ताम्रपत्र के मुताबिक वे दोनों उस काली गुफा तक जा पहुंचे। गुफा पत्थरों की बनी हुई था। दरवाजा भी कुछ पत्थरों से बंद किया हुआ था। 
जबाली ने गुहा के ऊपर की और देखा और मुस्कुराया और फिर उस और इशारा करते हुए कहा " देखो गुफा का नाम।"
मनोहर ने ऊपर की और नज़र दौड़ाई। गुहा के ऊपर लिखा था " जबालीपुर।"
जबाली - " लगता है इस गुहा का मालिक तो मैं ही हूं। न जाने इस गुफा में छिपे हुए धन को कब से मेरा ही इंतजार था और आज इस गुफा का मसीहा बिलकुल इसके सामने खड़ा है।"
ये सुनकर मनोहर आग बबूला हो गया। गुस्से के मारे आंखे लाल हो गई मगर उसने इस अपमान को पचा लिया और रौद्र रूप में बोल उठा " पहले गुफा का दरवाजा खोलते हैं।"
वे दोनों पत्थरों को हटाने लगे। पत्थरों को हटाकर गुहा के अंदर पहुंचे। गुफा में घना अंधकार छाया हुआ था। दोनो ने टॉर्च चालू की। गुफा के अंदर नीचे की और एक तहखाना था जिसमे सीढ़ियां बनी हुई थी जो की अब काफी हद तक टूट फूट चुकी थी। परंतु अंधेरे में भी तहखाने की सतह पर एक संदूक चमक रहा था जो काफी हद तक टूट फूट चुका था , अंशत: अभी भी बचा हुआ था। वे दोनों उस संदूक को देखकर पागल हो उठे। 
मनोहर - " पहले तुम चलो।"
मनोहर की बात सुनकर जबाली ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा तो मनोहर ने उसे पीछे से जोरदार धक्का दे मारा। वो लोट पोट होता हुआ सतह में जा गिरा और दीवार से सर टकराने के कारण तड़पने लगा। मनोहर ऊपर खड़ा जबाली की और देखकर मुस्कुरा रहा था।
मनोहर " लौड़े को बड़ा शौंक था अकेले धन हासिल करने का। अब इसे एक फूटी कोड़ी तक नसीब न होगी।"
मनोहर ने उस संदूक की और देखा और तेजी से नीचे उतरने लगा और संदूक को अपनी बाहों में भर कर पागल हो उठा। 
मनोहर - " अब सारा धन मेरा है। सिर्फ और सिर्फ मेरा।"
उसने हड़बड़ाहट में जल्दी से संदूक खोला  पर उसकी खुशी ज्यादा देर स्थिर न रह सकी क्योंकि संदूक तो पूरी तरह से खाली था। उसका दिमाग घूमने लगा। जबाली सतह पर लेटा अभी भी छटपटा रहा था । मनोहर की और देखते हुए उसने अपने अंतिम शब्द धीरे से कहे " बेईमानी का फल।।"
इतना कहकर उसने अपनी आंखे बंद कर ली जैसे उसमे प्राण ही न हों। मनोहर वहीं फर्श पर गिर पड़ा और फूट फुटकर रोने लगा। उसने आज सिर्फ चंद पैसों के लालच में आकर अपने दोस्त को मार दिया था। उसने जबालि को पाकर भी जबाली को खो दिया था।।

✍️✍️ भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

लड़का: शुक्र है भगवान का इस दिन का तो मे कब से इंतजार कर रहा था। लड़की : तो अब मे जाऊ? लड़का : नही बिल्कुल नही। लड़की : क्या तुम मुझस read more >>
Join Us: