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बेवफ़ा जिन्दगी- कभी भी दिल से साथ नहीं देती

संदीप कुमार सिंह 20 Sep 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 11420 0 Hindi :: हिंदी

बेवफ़ा जिन्दगी कभी भी दिल से साथ नहीं देती,
कभी ख्यालों के महासागर में तैराती फिर छोड़ देती।

ऐ जिन्दगी यूं न चाल चलो खुद ही रुसवा हो जाओ,
अपने जान को पहचानो और विजय दिलाओ।

सब के साथ तो तूं ऐसा नहीं करती,
भेदभाव प्रिय तुम क्यों करती हो?

तेरा साथ पाकर ही तो मैं आगे बढ़ना चाहा,
तूं ने कई हसीन मंजर खिलाए।

पर तेरी यह आदत बहुत बुरी है,
बीच रास्ते में क्यों भटकाने लगती हो।

वफा की तो ऐसी परिभाषा नहीं है,
यहां तो जन्म-जन्मांतरों तक साथ निभाने की परम्परा है।

तो प्रिय जिन्दगी मेरे आग्रह को स्वीकार करो,
तूं मुझ में मैं तुझ में जीवन जंग में साथ रहो।

तुम गीत बन मेरे लबों पर रहो,
मैं एक प्रसिद्ध फनकार बनूं।

इस प्यारी दुनिया को और प्यार दूं,
जिन्दगी तूं मुझे इस लायक सँवार दो।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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