Sudha Chaudhary 19 Jul 2023 कविताएँ दुःखद 8807 0 Hindi :: हिंदी
मिलने पर भी बिछड़े से ही लगते हैं दूरी इतनी पास हुई है की बस सहमें सहमे लगते हैं। मेरे सुर से पीर हिया की कभी सुनाई पड़ती है कभी तुम्हारे नैन बिजली से जलने लगते हैं। मिलने पर भी बिछड़े से ही लगते हैं। यह मधुमास मुझे अति पीड़ा देता है चंदा भी अपनी शीतलता धोता है रोज रागनी करती हैं मेरे बन्दन पर क्रंदन रहती है जो बात हंसी में उसको भी जोड़े रखते हैं मिलने पर भी बिछड़े से ही लगते हैं। जलधि लहरियां जंजालों सी आती जाती रहती हैं मन की गति उस भांति विचर नहीं पाती है। सहज हिलोरें लेते लेते यह अंतिम रथ से लगते हैं। मिलने पर भी हम हरदम बिछड़े से ही लगते हैं। सुधा चौधरी बस्ती