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दोस्त और दुश्मन

SANTOSH KUMAR BARGORIA 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद इस कविता के माध्यम से मैं अपने मित्र के बताना चाहता हूँ की ऐ दोस्त महफिल में मुझे सौ दोस्त तो मिले लेकिन कोई एक भी दुश्मन मुझे तुमसा नहीं मिला । 40430 0 Hindi :: हिंदी

          दोस्त और दुश्मन 
         ------------------------

महफिल में मिले सौ दोस्त तो मगर, 
दुश्मन ना कोई एक ओ यारा तुम सा मिला ।
वो जो विरुद्ध खड़ा है अब तक मेरे अपना सीना तान,
ना ढोंग दिखाकर कभी भी मेरा ना वो मित्र सच्चा बना ।।

महफिल में मिले सौ दोस्त मगर, 
दुश्मन ना कोई एक ओ यारा तुम सा मिला ।

नीयत थी उसकी पाक साफ, 
भले थी मुझसे दुश्मनी की ही ।
ना हाथ बढ़ा मित्रता का कभी , 
उसने दोस्ती के इस रिश्ते को छला ।।

महफिल में मिले सौ दोस्त मगर, 
दुश्मन ना कोई ओ यारा तुम सा मिला ।

पाल रखा था हमने ही ,
आस्तीन में साप अपने । 
जो डसते रहे हमें अब तक ,
और हम समझते रहे उन्हीं को परमार्थ अपने ।।

हम जान छिड़कते हैं जिनपर, 
वो ही जान लेने को है आतुर ।
भला कैसे हम अपने किसी मित्र पर,  
हम थोड़ा सा भी संदेह करते ।।

गर हसकर मांगते जान भी  मेरी, 
तो वो भी तुम पर न्योछावर था  ।
फिर आख़िर ऐसी क्या वजह थी दोस्त,  
जो तूनें मुझ संग इतना बड़ा दगा किया ।।

महफिल में मिले सौ दोस्त मगर, 
दुश्मन ना कोई ओ यारा तुम सा मिला ।।2।।

            🙏धन्यवाद 🙏
                 

                                  संतोष कुमार बरगोरिया 
                               -----------------------------------
                                    (साधारण जनमानस)

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