अभिषेक मिश्रा 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक ✍✍ अभिषेक मिश्रा 17712 0 Hindi :: हिंदी
अब ! आ गया है चुनावी रंग , सब पर छा गया है चुनावी रंग l नेताजी भी हो गए बेढ़ंग , मचा रहें हैं चारों तरफ हुड़दंग l ऐसा सब पर छाया रंग , सीधे-सच्चे लोकतंत्र को ? तरह-तरह के वादों व जुमलो में भटकाया रंग । जनता बेचारी गई मारी, बढ़ती जा रही दिनों-दिन बेरोजगारी । युवा है परेशान किसानों में भी घमासान, देश- प्रदेश हित के लिए नेताजी हैं इतने हैरान ? पार्टी से टिकट न मिलने पर, लगता है देश- हित में कर देंगे अपने प्राणों का बलिदान। आखिर ! यही तो है उनका स्वाभिमान l लेकिन इतने पर भी वो शोषित दलित व वंचितों को , दिला कर मानेंगे ही उनका उचित सम्मान ।इतने दिनों तक खाए रबड़ी-मलाई , इन्हें तो आज याद आई है लोगों की भलाई। खैर चुनावी रंग का होता है , कुछ अनूठा अंदाज । जिसमें नेताजी जनहित के लिए , करना चाहते हैं कुछ नया खास। जनता का भी है उन पर अटल विश्वास , फिर भी नेताजी करेंगे उन सबका सत्यानाश । हाय ! ये तौबा- तौबा कैसा है , लोकतंत्र का चुनावी रंग। जिसमें नहाकर घुल-मिलकर , सभी भेड़िए हो जाते हैं एक संग । - अभिषेक मिश्रा {इलाहाबाद विश्वविद्यालय ,प्रयागराज}