Bholenath sharma 09 Jan 2024 कविताएँ समाजिक याद है वो दिन 9644 0 Hindi :: हिंदी
किस्से बचपन के बड़े अनूठे है बातो-बातो में हम तुमसे रूठे है कुछ पल खामोशी छा जाती थी फिर कुछ पल के बाद खामोशी लुप्त हो जाती थी यदि न इच्छा पूरी हो तो एक सूत्र था बचपन का , रोना ही रोना जब तक मिले न खिलौना अब वो बिसर गया दिन बचपन का । बहुत बनाते थे बहाना स्कूल नहीं जाऊँगा रोजाना , बीत गया वो बचपन अब यौवन में पछताना । अब सुधि आती है उस बीते पल की पर सिर्फ पछताना है बार बार कहने पर भी हम बिसार देते थे वही आज पछताना है