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लापता बच्चे

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख बाल-साहित्य Child Article 87919 0 Hindi :: हिंदी

   
	छग के राजनांदगांव के न्यू खंडेलवाल कालोनी, ममता नगर से घर के बाहर खेल रहे आठ वर्षीय बालक नैतिक दल्ला का बाइकसवार नकाबपोशों ने अगवा कर लिया। इत्तफाकन वारदात सीसीटीवी मेें कैद हो गया। 
अपहरणकर्ता बिना साइलेंसर रेसर बाइक में चेहरे पर स्कार्फ बांधकर आए हुए थे। इस बीच नेहा नामक बच्ची ने शोर भी मचाया। मुहल्लेवासियों के अनुसार बाइक सवार गत दो-तीन दिन से मुहल्ले की रैकी कर रहे थे। 
	सूचना मिलते ही पुलिस फौरन हरकत में आई और राजनांदगांव समेत पड़ोसी जिले के सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी। शहर के चैक-चैराहों पर लगे सीसीटीवी फुटेज से आरोपितों की तलाश की जाने लगी। 
तभी कालोनी और रेलवे स्टेशन की पार्किंग स्टैंड से आरोपितों का साफ फुटेज मिल गया। इसे देखते ही नैतिक के पिता विनोद दल्ला ने बाइक सवार दोनों में-से एक युवक की पहचान अपने नौकर अक्षय सहारे के रूप में की।
	इधर पुलिस आरोपित के मोबाइल नंबर को टैªश कर उसके पीछे दौड़ती रही। रात करीब ढाई बजे महाराष्ट्र के साल्हेकसा में उसे धर दबोचा गया। 
कुटाई के पश्चात पूछताछ में अपहरणकर्ता अक्षय सहारे ने बताया कि वह दल्ला की डांट-फटकार का बदला लेने के लिए उसके बच्चे का अपहरण किया था। 
दुर्ग रेंज आइजी के अनुसार, आमगांव से लगे ग्राम पोकेटोला निवासी अक्षय सहारे ही इस वारदात का मास्टरमाइंड था, जो फिरौती के चक्कर में था।
	गत वर्ष छग के दुर्ग में ही स्कूल वेन मैजिक के चालक व परिचालक ने स्कूल जानेवाले मासूम बच्चे का अपहरण कर लिया था। इसकी सूचना स्कूल के टीचर व घरवालों के द्वारा तत्काल पुलिस को दी गई। 
इससे पुलिस एक्शन में आई। पुलिस की मुस्तैदी, नाकेबंदी व त्वरित कार्रवाई का ही नतीजा था कि बालक रात को राजनांदगांव जानेवाली नेशनल हाइवे के किनारे के एक घर से बरामद हुआ। इसमें भी अपहर्ता दिनभर पुलिस को छकाता रहा और फिरौती की फिराक में रहा।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, 2014 से 16 के बीच देश भर में 1.93 लाख बच्चे लापता हुए हैं, जिनमें से 1.19 लाख केवल बालिकाएं हैं।
मंत्रालय के अनुसार 2014 में लापता हुए 68,874 बच्चों में 41,614 बालिकाएं, वर्ष 2015 में लापता 60,443 बच्चों में 36,595 बालिकाएं तथा वर्ष 2016 में 63,407 बच्चे में-से 41,067 बालिकाएं लापता हुई हैं। 
इनमें इन तीन सालों में अकेले राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 22,362 बच्चे लापता हुए हैं, जहां हर साल 7,000 बच्चों के लापता होने के मामले दर्ज हैं। इन मामलों में मानवतस्करी, अपहरण और अन्य गोरखधंधे जैसी गतिविधियां सामने आई है।
चाइल्ड माफिया, हाथ-पैर तोड़कर भीख मंगवाते हैं। किसी पुल-पुलिया या डेम के निर्माणस्थल में बलि चढ़ाते हैं। किडनी-लिवर निकालकर बेच देते हैं। खतरनाक व शर्मनाक काम में ढकेल देते हैं। उग्रवादी ब्रेनवाश कर आतंकवादी बना देते हैं या फिर धनकुबेर बंधुआ मजदूरी करवाते हैं।
पिछले साल ही 10 वर्षीय दीपा जाने कहां गायब हो गई? एक साल हो गए; कहीं अता-पता नही चल रहा है। उसके माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल है। 
लगता है, वह भी इसी तरह किसी पाजी के चगुल में फंस गई होगी। कितने नीच होते हैं ये शैतान, जो अबोध बच्चों का व्यापार करते हैं? उनके भोलेपन का फायदा उठाते हैं। उनको चंद रुपयों के खातिर बेच देते हैं। 
जबकि इनके घर-परिवार में भी बच्चे होते हैं। ऐसा धिनौना काम करते वक्त उनका जमीर नहीं कचोटता? दिल नहीं पसीजता! दीपा के माता-पिता पड़ोसियों और रिश्तेदारों को लेकर बीसों बार पुलिस थाना जा चुके हैं। पार्षद सहित प्रशासन से अनेक बार गुहार लगा चुके हैं। पेपर में भी जानकारी दिए हैं, लेकिन नतीजा? वही ढाक के तीन पात!
 मासूम बच्चों को क्या आसमान ले उड़ता या धरती निगल जाती? आखिर, कहां खो जाते हैं अबोध बच्चे? देशभर के ये लापता बच्चे दुर्ग-राजनांदगांव के बच्चों की तरह रसूखदार परिवार से नहीं हैं, इसलिए उनकी कोई खोज-खबर लेनेवाला कोई नहीं है। 
शुक्र है कि केंद्र व राज्य सरकारें जनवरी 2015 से राज्य पुलिस की मदद से ‘‘आपरेशन स्माइल/मुस्कान’’ योजना चला रही है। इस योजना के तहत योजना प्रारंभ एवं उसके पहले के वर्षों को मिलाकर 66,453 बच्चे बरामद किए गए हैं।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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