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रात बीती मगर दुविधाएं नहीं

Sudha Chaudhary 15 May 2023 कविताएँ दुःखद 7487 0 Hindi :: हिंदी

घर जिसे समझे थे 
वो मकान निकला
अपने ही दर्द से
सब बहा निकला।
रिश्ते समझते समझते
जिंदगी निकली
अब तो कुछ समझने
के काबिल भी नहीं।
फर्क पड़ता था
जब बातें थी
नहीं पड़ता असर
तेरे होने ना होने से।
गलती किसकी थी
कौन टूटा
मन के पन्ने
उलट ते तो पता चलता।
रात बीती मगर
दुविधाएं नहीं
आज भी वही हूं
जहां कोई नहीं।


सुधा चौधरी

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