मारूफ आलम 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक #kafila#maroof#alam 41701 0 Hindi :: हिंदी
लापता काफिलों की एक कश्ती को किनारों से बचाकर लाए हैं बमुश्किल हस्ती को किनारों से बुनियादों के सिवा कुछ भी बाकी नही बचा था दरियाफ्त किया जब हमने बस्ती को किनारों से झूठे दरिया का सर भी आसानी से नही झुकता है टकराते देखा है हमने हक परस्ती को किनारों से सरपरस्तों की सरपरस्ती पर पक्का यकीं न कर लौटते देखा है अक्सर सरपरस्ती को किनारों से जरा जरा सी बात पर भरोसे टूट गए ऐ"आलम" टूटते देखा है हजारों बार ग्रहस्ती को किनारों से मारूफ आलम