संदीप कुमार सिंह 05 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3559 0 Hindi :: हिंदी
जब नहीं आ रही थी बरसात, तब तो बहुत ही इंतजार था। जब आ गई अपने रूप में, होने लगी घमासान वारिश। पानी ही पानी छा गई चारों तरफ, लोग_बाग सब तरबतर हो गए। फिर जुकाम ने अपना, लगा दिया है भारी पहड़ा। घर_घर में लोग ग्रसित है, जुकाम भी बढ़ता ही जा रहा है। फिर अदरक वाली चाय, सबको याद आने लगी है। जिसे नहीं पसंद, उसको भी पीना मजबूरी है। नहीं तो जुकाम बढ़ता ही जायेगा, मजा सारा बेकार हो जायेगा। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....