SHUBHAM PATHAK 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद शुभम पाठक कविता , मैं अपनों को छोड़ चला.., 80837 0 Hindi :: हिंदी
मैं यह जीवन समर में दुनिया को छोड़ चला... क्रोध मोह माया के चलते मै अपनों को छोड़ चला! मैंने सोचा बहुत कुछ पाया पर मैं सिर्फ खोया ही खोया था! मैं यह जीवन समर् में अपनों को छोड़ चला। सबसे थे रिश्ते लोग से अपनों ने ही अपमान किया। मैं क्या जानू अपना पराया। तूने ही पहचान कराया! मेरे यहां कुछ भी नहीं था। सब दिया तुम्हारा ही था। मैं क्या जानू मंदिर मस्जिद तूने ही पहचान कराया... थी ,आशा सिर्फ दाता से मुझको उसी का दिया हम सब पाया। लो पैसा के चलते सब दाता को ही भूल गया। उम्मीद ही मेरी कुंजी थी उसने भी खोलने का प्रयास किया मैं क्या बतलाऊं अपना दर्द अपनों ने ही कष्ट दिया। थी छोटी सी जिंदगी ममता ने खींच कर बड़ा किया मतलब है सब पैसे से रिश्ता कहां अब अनमोल रहा! शुभम् पाठक गया बिहार