Amit bhatt 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जीवन का अनुभव 19083 0 Hindi :: हिंदी
एक दिन अकेला बैठा था में ना कोई नाम था मेरा न थी कोई पहचान l सोच रहा था क्या करूंगा क्या बनूँगा अपने मकसद से था बिलकुल अनजान ll नदी के परवाह सा न था में बिलकुल सागर सा था बीरान l अकेला पथिक था उस पथ का जिसमे मेरे लिए हर कोई था बेजान ll लेकिन उस पथ पर चलते चलते एक दिन आभास हुआ l कुछ करने और बड़ा बनने का प्रयास किया ll अपने इस जीवन में कितनी ठोकरें खाई है मैंने फिर भी संभलकर आगे बढ़कर सफलता पाई है मैंने ll जीना सीख गया था में जमाने के अस्कामो[बुराइयाँ ] मे l लड़ना सीख गया लोभ लालच और बेइमानी के दुष्कामो से ll एक दिन मैंने देख तो मेरे सामने झुका सारा जमाना था l मगर अचानक नींद खुली तो देखा ये तो एक अफसाना [सपना ] था ll में मुस्कुराया और सोचा जिंदगी खेल रही है खेल मेरे साथ l जैसे इकरार का मेल हो इंकार के साथ ll में समझ गया जीवन तो एक कटपुतली है l जिसे नचाता ईश्वर और नाचती जिंदगी है l