गौतम बुद्ध ने कहा था कि :-
“आप कि बात उसे प्रसन्द नही आएगी जब वह किसी दूसरे व्यक्ति कि बात सुन रहा हो।”
सुकरात ने कहा था कि :-
“जब इंसान झूठ और सच मे फर्क नही समझ पाता है तो वह अपनो को ही बुरा समझने लगता है।”
रवींद्र नाथ टैगोर ने कहा था कि :-
“आप के साथ रहने को बहुत से लोग तैयार होंगे, लेकिन पहचानना आप को ही पड़ेगा कि ‘अपना है कौन’ ”
जिस प्रकार से प्रत्येक चमकदार वस्तु हीरा हीरा नही होता
उसी प्रकार से प्रत्येक मीठा बोलने वाला व्यक्ति अपना नही हो सकता।
वक्त के साथ आदमी, स्थान के साथ पानी, रिश्ते के अनुसार बोलने कि शैली बदल जाते हैं।
जहर भी नुकसान नही पहुँचाता जब आप को पता हो कि उपयोग किस समय और कहाँ करना है।
छल से प्राप्त किया गया अमृत भी आप को दो भागो में बाट सकता है।
कमी बताना आसान है लेकिन कमी दूर करना बहुत कठिन होता है।
सदुपयोग जानते हो तो कांटा से कांटा भी निकाला जा सकता है।